इंदौर के कुख्यात गैंगस्टर सलमान लाला की मौत ने शहर की आपराधिक दुनिया को थामने के बजाय एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। मौत के बाद उसके समर्थकों ने सोशल मीडिया पर अफवाहों और माहौल बिगाड़ने की कोशिश की। पुलिस की साइबर टीम ने 35 संदिग्ध अकाउंट्स की पहचान की है, जिनमें कुछ युवतियों के नाम भी शामिल हैं। सवाल यह है कि अपराधियों की मौत तक को “रोमांटिक छवि” देने की कोशिश आखिर किस दिशा की ओर इशारा करती है?
अपराध से मौत तक : सलमान लाला की कहानी
31 अगस्त को सलमान लाला की मौत तालाब में कूदने से हुई। वह पुलिस कार्रवाई से बचने के लिए भाग रहा था, लेकिन भागते-भागते उसी पानी में डूब गया जिससे निकलने के लिए वह अपराध की दुनिया में उतरा था। परिवार के खिलाफ हत्या, चाकूबाजी, लूट और अवैध शराब से जुड़े कई मामले दर्ज रहे हैं। यानी यह कोई व्यक्तिगत दुर्घटना नहीं बल्कि एक अपराधी जीवन की स्वाभाविक परिणति थी।
सोशल मीडिया पर अपराधी की ‘ब्रांडिंग’
क्राइम ब्रांच की रिपोर्ट बताती है कि गैंगस्टर की मौत के बाद समर्थक सोशल मीडिया पर ऐसा माहौल बनाने में जुट गए थे मानो यह कोई शहादत हो। यह प्रवृत्ति चिंताजनक है—युवाओं के बीच अपराधियों की छवि को “नायक” बना देने का काम वही करता है। खासकर जब इसमें युवतियों तक की भागीदारी हो, तो यह सवाल उठता है कि समाज में अपराधी छवि के प्रति आकर्षण किस तरह पनप रहा है।
1990 का रीगल चौराहा और आज की चुनौती
पुलिस खुफिया रिपोर्ट ने आगाह किया कि समर्थक 1990 के रीगल चौराहे जैसी स्थिति दोहराने की तैयारी कर रहे थे, जब शक्ति प्रदर्शन के दौरान पथराव और तोड़फोड़ हुई थी। यानी चुनौती सिर्फ कानून-व्यवस्था संभालने की नहीं, बल्कि इतिहास को खुद को दोहराने से रोकने की थी।
भीड़, प्रशासन और कानून की नसीहत
सलमान लाला के जनाजे में हजारों की भीड़ उमड़ी। प्रशासन ने भारी पुलिस बल तैनात कर स्थिति संभाली, लेकिन ट्रैफिक अव्यवस्था और जेल से लाए गए उसके भाई गोलू की मौजूदगी ने यह साफ किया कि अपराध का तंत्र केवल व्यक्ति की मौत से खत्म नहीं होता।
राजनीति और प्रशासन : मौन सहमति या मजबूरी?
इंदौर में संगठित अपराध का लंबा इतिहास बताता है कि अपराधी तत्व केवल डर से नहीं, बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक मौन-सहमति से भी पनपते हैं। कई बार स्थानीय नेताओं की सामाजिक दबदबे की राजनीति और पुलिस-प्रशासन की समझौता संस्कृति ने ऐसे गैंगस्टरों को ताकत दी है। यही कारण है कि सलमान लाला जैसा अपराधी मौत के बाद भी बड़ी भीड़ और डिजिटल समर्थन जुटा पाया। यह सवाल सिर्फ कानून-व्यवस्था का नहीं बल्कि शासन की प्राथमिकताओं और राजनीतिक संरक्षकत्व का भी है।
सलमान लाला की मौत महज एक अपराधी के अंत की कहानी नहीं है। यह उस सामाजिक मानसिकता का आईना है, जिसमें अपराधियों की मौत भी शक्ति प्रदर्शन और गौरव का बहाना बन जाती है। पुलिस की कार्रवाई जितनी जरूरी है, उतनी ही जरूरी यह समझना भी कि राजनीति और प्रशासन की निष्क्रियता अपराधी संस्कृति को कैसे पालती-पोसती रही है। समाज को अपराधियों को नायक बनाने की मानसिकता से बाहर निकालना तभी संभव होगा, जब शासन-प्रशासन और राजनीतिक नेतृत्व मिलकर अपराध के हर रूप पर बेबाक कार्रवाई करें।