
रानी सराय भवन
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रानी सराय 1907 में बनाया गया था। करीब 117 वर्ष पुरानी इस धरोहर को तोड़कर मेट्रो के शहरी हिस्से के लिए राह आसान करने की बात हो रही है। आधुनिक इंदौर के निर्माताओं में पूर्ववर्ती महाराजा शिवाजीराव होल्कर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनके कार्यकाल में इंदौर में कई भवनों का निर्माण हुआ। उनमें प्रमुख हैं होल्कर कॉलेज, शिवविलास पैलेस, फूटी कोठी (जो अधूरी रही), मोती बंगला, गांधी हॉल, बड़वाह का दरियाव महल आदि हैं।
महाराजा शिवाजीराव ने दिया इंदौर को नियोजित रूप
महाराजा शिवाजीराव होल्कर ने इंदौर नगर के नियोजित विकास के लिए उस वक्त के प्रख्यात नगर नियोजक पैट्रिक गिडीज को लंदन से इंदौर बुलवाया था। उन्होंने इंदौर का पहला मास्टर प्लॉन बनाया था। शिवाजीराव होल्कर की पत्नी वाराणसी बाई साहेब होल्कर बीमार थीं। तब महाराजा शिवाजीराव होल्कर ने 1 लाख 25 हजार रुपये की राशि का धार्मिक और पारमार्थिक कार्यों का प्रावधान किया था। इस राशि के उपयोग का विचार महारानी वाराणसी बाई साहेब के निधन बाद शिवाजीराव होल्कर के पुत्र और उनके उत्तराधिकारी महाराजा तुकोजीराव होल्कर तृतीय के कार्यकाल में हुआ। महारानी वाराणसी बाई की याद में एक सराय यानी धर्मशाला बनाने का निर्णय हुआ।
चार्ल्स स्टिकेंस कंपनी ने बनाई डिजाइन
इंदौर रेलवे स्टेशन के समीप नगर के बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए इस स्थान पर सराय बनाने का निर्णय हुआ। बॉम्बे के चार्ल्स स्टिकेंस कंपनी ने इस भवन को डिजाइन किया। रानी सराय दो मंजिला बनाई गई। मुख्य द्वार भव्य बनाया गया, आबो-हवा के लिए भवन में कई खिड़कियां रखी थीं। सराय में दो बड़े हॉल और 25 कमरे बनाए गए थे। इस तरह 1907 में तैयार हुए इस भवन का उद्घाटन भी 1907 में कर दिया गया था। इस सराय का नाम न्यू वाराणसी बाई होल्कर सराय किया गया था।
1909 में सराय के प्रवेश द्वार के प्रवेश करते ही खुले मैदान में एक भव्य फव्वारे का निर्माण करवाया गया था यह फव्वारा वाराणसी बाई साहेब की सहायिका गेरटयूड के निधन होने पर किया गया था। सराय के निर्माण पर 1 लाख 51 हजार 186 रुपये व्यय हुए थे। सराय निर्माण में काले और सफेद पत्थरों का उपयोग किया गया था।
1944 तक ही सराय के रूप में उपयोग
यह इमारत 1907 से 1944 तक ही सराय रही। इसका उपयोग बंद हो गया और इसके कमरों में सरकारी विभाग का रिकॉर्ड रख दिया गया। 1952 में यह सराय मध्यभारत शासन द्वारा गोविंदराम सेकसरिया कॉलेज को उपयोग के लिए दे दी गई थी।
1989 में बना पुलिस अधीक्षक कार्यालय
1989 में पुलिस अधीक्षक कार्यालय इस भवन में स्थानांतरित हो गया था। इस परिसर के मैदान पर कई देशों की प्रसिद्ध नाटक मंडलियों ने अपने नाटकों की प्रस्तुति दी थी। इसके मैदान पर शाही मीना बाजार लगता था।
एक संयोग है कि 117 वर्ष प्राचीन होल्कर कालीन धरोहर जो जिस उद्देश्य के लिए बनाई गई थी वह 37 वर्ष ही सराय रही। 80 साल से वह कभी कॉलेज के पास तो कभी पुल निर्माण के लिए सामग्री का भंडार रही। शेष समय खाली और करीब 35 साल से पुलिस विभाग के पास है। अब महारानी की स्मृति में निर्मित रानी सराय को मेट्रो के लिए तोड़ने की कवायदें हो रही हैं। नागरिक मांग कर रहे हैं कि इस धरोहर को सहेज कर रखा जाए।