आप के सर्वे में उमेश मित्तल का नाम ! मैदान में उतरे तो गड़बड़ाएंगे कईयों के समीकरण

Denva Post Exclusive. चुनावी साल है…ज्येष्ठ का महीना जाने को है और आषाढ़ दस्तक दे रहा है। इसी के साथ शुरू हो चुका है लोगों की नब्ज टटोलना। राजनीतिक पार्टियां और कुछ प्राइवेट फर्म चुनावी सर्वे शुरू कर चुकी है। कार्यकर्ताओं के साथ—साथ लोगों की नब्ज टटोलकर यह पता लगाए जाने की कोशिश की जा रही है कि जिताउ उम्मीदवार कौन हो सकता है। इस बीच आम आदमी पार्टी यानी आप के सर्वे में सेमरी हरचंद के उमेश मित्तल का नाम आने से राजनीतिक गलियारों में पारा हाई हो गया है, पारा हाई होने का एक कारण यह भी है कि बीजेपी से दूरियां बढने के बाद मित्तल ने कांग्रेस का हाथ थामा था, ऐसे में आप की ओर से आफर मिलना राजनीतिक पारे को हाई करने की पर्याप्त वजह माना जा सकता है। जानकारों का मानना है कि यदि उमेश मित्तल चुनावी समर में अपना भाग्य आजमाते हैं तो नतीजा भले ही कुछ हो लेकिन कईयों के समीकरण जरूर गड़बड़ा जाएंगे। देनवा पोस्ट की एक्सक्लूजीव स्टोरी में आज बात इसी मुद्दे पर होगी।

माखननगर की एक बैठक जिसने पैदा कर दी गहरी खाई

बात 2008 के चुनाव की है। सोहागपुर विधानसभा के गठन के बाद उमेश मित्तल खुद सोहागपुर विधानसभा से बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे। उस समय बीजेपी में कद्दावर नेता माने जाने वाले सरताज सिंह से उमेश मित्तल की काफी नजदीकियां भी थी, लेकिन टिकट लास्ट में मिला विजयपाल सिंह को। उमेश मित्तल ने बीजेपी के लिए काम भी किया। बीजेपी जीती भी, लेकिन इसके बाद 2009 में माखननगर में बीजेपी नेता संतोष अग्रवाल के यहां पार्टी की एक बैठक हुई, जिसमें कुछ ऐसा हुआ जिसने विधायक विजयपाल सिंह और उमेश मित्तल के बीज ऐसी खाई पैदा कर दी जो आज तक पाटी नहीं जा सकी है, बल्कि समय के साथ—साथ यह खाई और भी गहरी हो चुकी है और अब हालात यहां तक आ गए हैं कि उमेश मित्तल को विजयपाल सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ना पड़ा तो उससे भी कोई गुरहेज नहीं है।

सबसे बड़ा नुकसान बीजेपी को ही

मित्तल परिवार की पृष्ठभूमि बीजेपी की ही रही है। मित्तल परिवार शुरू से ही संघ के काफी नजदीक माना जाता रहा। उमेश मित्तल के छोटे भाई अनूप की अभी भी विधानसभा के कई स्वयंसेवक और संघ पदाधिकारियों से गहरी नजदीकियां है। सोहागपुर विधानसभा के गठन से पहले तक उमेश मित्तल बीजेपी के महत्वपूर्ण पदों पर रहे। जब विजयपाल सिंह ने अपना पहला चुनाव यहां से लड़ा तो उनके साथ सेमरी हरचंद से लेकर सोहागपुर तक उमेश मित्तल ने कदम से कदम मिलाया और बीजेपी को लीड दिलाई। उमेश मित्तल की आज भी क्षेत्र में काफी पकड़ है और ऐसे में इनके चुनाव मैदान में उतरने से सबसे बड़ा नुकसान बीजेपी को ही हो जाएगा।

कांग्रेस को भी आ सकती है दिक्कतें

विधायक विजयपाल सिंह से अनबन के बाद उमेश मित्तल बीजेपी से भी दूर होते चले गए, इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा। चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सतपाल सिंह पलिया के समर्थन में खुलकर मैदान में भी उतरे। वैसे तो किसी कैंडिडेट के चुनाव में जीतने के पीछे सभी वर्गों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, लेकिन बीजेपी का मुख्य गढ़ माखननगर और बड़ा वोट बैंक यादव समाज को माना जाता रहा है, जो चुनाव में हमेशा तटस्थ ही रहा। ऐसे में जिन इलाकों में उमेश मित्तल की पेठ है, वहां पिछले चुनाव में बीजेपी कुछ खास कमाल नहीं कर पाई। ये वोट बैंक कांग्रेस को शिफ्ट हुआ। ऐसे में उमेश मित्तल यदि आप के साथ हो गए तो कहीं न कहीं कांग्रेस को भी नुकसान पहुंचा देंगे।

ऐसे गड़बड़ाएंगे राजनीतिक समीकरण

उमेश मित्तल सीधे तौर पर बीजेपी में ही सेंध लगा देंगे। बीजेपी के ऐसे सभी वरिष्ठ नेता जो अपने आपको अब ठगा महसूस कर रहे हैं, उनसे उमेश मित्तल सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। वहीं क्षेत्रीय सामाजिक और कांग्रेस नेताओं से भी अब उमेश मित्तल की नजदीकियां है। एक समाजसेवी के रूप में पहचान होने के कारण उमेश मित्तल के जगह—जगह अपने लोग भी हैं जो जीत—हार और दलगत राजनीति से परे होकर उमेश मित्तल का ही साथ देंगे। उमेश मित्तल के छोटे भाई अनूप मित्तल की व्यापारी वर्ग में पेठ है, वे यहां बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा व्यापारी वर्ग से उम्मीदवार मैदान में हुआ तो व्यापारी वर्ग का एक बड़ा तबका इनके समर्थन में आ सकता है। जिससे कईयों के राजनीति समीकरण गड़बड़ा सकते हैं।

आप से लगभग हरी झंडी, इन 4 वजहों से पार्टी की पंसद बने उमेश

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आम आदमी पार्टी यानी आप की ओर से उमेश मित्तल के नाम पर सहमति बनने की संभावना जताई जा रही है । दो बार पार्टी ने मित्तल परिवार से संपर्क कर भी लिया है। आम आदमी पार्टी के लिए उमेश मित्तल का नाम फाइनल होने की चार बड़ी वजह मानी जा रही है। पहला छवि बेदाग है और लोगों की हक की लड़ाई के लिए किसी भी मोर्चे पर मित्तल आमने सामने की लड़ाई लड़ने से परहेज नहीं करते हैं। दूसरा विधानसभा में इनके कई जगह अपने लोग हैं, कुल मिलाकर पूरी टीम तैयार बैठी है। तीसरा चुनाव लड़ने के लिए फाइनेंशियल स्थिति मजबूत है और चौथा बीजेपी और कांग्रेस दोनो ही दलों में सेंध लगा सकते हैं।

गेंद उमेश मित्तल के पाले में

वर्तमान में जो स्थिति है उसमें यदि उमेश मित्तल आम आदमी पार्टी को अपनी सहमति दे देते हैं तो आप की सूची में पार्टी प्रत्याशी के रूप में उमेश का नाम डिक्लेयर हो सकता है। कुल मिलाकर गेंद उमेश मित्तल के पाले में ही है और फैसला उन्हें ही करना है। हालांकि उमेश अभी खामोश बैठे हैं। शायद ये वक्त की नजाक्त को पहचानने की एक कोशिश हो। समय पर कोई फैसला लें। लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी उमेश मित्तल कहीं भी टिकट मांगने नहीं जाने वाले, पर आने वाले समय में अचानक कोई बड़ा फैसला कर मैदान में उतर भी जाएं तो चौंकिएगा मत…क्योंकि वजह तो हम आपको पहले ही बता चुके हैं।

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