Hindi News|नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की वक्तृत्व कला

Humour gives Modi a special edge in politics

New Dehli। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की वक्तृत्व कला को लेकर उनके कट्टर विरोधी भी यह मानते हैं कि वह मंच पर भीड़ को बांधने और अपने संदेश को प्रभावी ढंग से पहुँचाने में अद्वितीय हैं। लेकिन उनकी भाषण शैली का सबसे अहम और कम आंका गया पहलू है — हास्य का रणनीतिक उपयोग

मुहावरों और फिल्मों से सीधे जुड़ाव

मोदी का अंदाज़ केवल तथ्यों या नीतिगत बहस तक सीमित नहीं रहता। वे आम लोगों की बोलचाल, मुहावरों और लोकप्रिय फिल्मों के संवादों को अपनी भाषा में इस तरह पिरोते हैं कि संदेश सीधा श्रोताओं के दिल में उतर जाता है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने शोले फिल्म का प्रसिद्ध डायलॉग “अरे ओ सांभा, कितने वोट लाये?” कांग्रेस की चुनावी राजनीति पर तंज कसने के लिए इस्तेमाल किया। श्रोता हंसी से लोटपोट हो उठते और संदेश बेहद सहजता से पहुँच जाता।

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नरेंद्र मोदी (Narendra Modi)व्यंग्य से हमला और माहौल

मोदी के भाषणों में चुटीले वन-लाइनर्स एक राजनीतिक हथियार की तरह काम करते हैं। संसद से लेकर चुनावी मंच तक, वह विरोधियों पर व्यंग्य करते हुए माहौल को हल्का बना देते हैं।

  • जब कांग्रेस की सीटें लगातार घटती गईं तो उन्होंने कहा — “400 से 40 तक!”। यह पंक्ति सिर्फ़ भाषण तक सीमित नहीं रही, बल्कि सोशल मीडिया पर मीम बनकर वायरल हो गई।
  • 2020 में राहुल गांधी के भाषण पर चुटकी लेते हुए मोदी बोले — “मैंने 30-40 मिनट तक बात की, लेकिन करंट पहुंचने में इतना समय लग गया। कुछ ट्यूब लाइटें इसी तरह काम करती हैं!”। संसद ठहाकों से गूंज उठी।

नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) आत्मव्यंग्य की कला

मोदी ने अपने ऊपर होने वाले हमलों को भी हास्य में बदलकर अपने पक्ष में किया। उनका मशहूर कथन “मैं प्रतिदिन 2-3 किलो गाली खाता हूं, इसलिए मुझ पर कोई असर नहीं होता” दर्शाता है कि वह आलोचनाओं को भी सकारात्मक ऊर्जा में बदल देते हैं। यही वजह है कि विरोधियों के तीर भी अक्सर उन्हीं के हथियार बन जाते हैं।

राजनीतिक असर

हास्य और व्यंग्य से लिपटी यह शैली मोदी के लिए केवल ताली बटोरने का माध्यम नहीं है। यह रणनीति कई स्तरों पर असर डालती है:

  1. जनसंपर्क – सरल और मजाकिया भाषा से वह भीड़ के साथ भावनात्मक रिश्ता बना लेते हैं।
  2. विरोधियों को असहज करना – तंज और चुटकुलों से विपक्ष के नेताओं को अक्सर रक्षात्मक मुद्रा में आना पड़ता है।
  3. संदेश की याददाश्त – गंभीर मुद्दे भी मजेदार पंक्तियों के कारण जनता के मन में लंबे समय तक बने रहते हैं।
  4. डिजिटल युग में असर – उनकी वन-लाइनर्स सोशल मीडिया पर तुरंत वायरल हो जाती हैं और चुनावी विमर्श का हिस्सा बन जाती हैं।

नरेंद्र मोदी(narendra Modi) का वक्तृत्व केवल भाषण देने की कला नहीं, बल्कि एक सोच-समझकर गढ़ी गई संचार रणनीति है। इसमें हास्य, व्यंग्य और आत्मव्यंग्य का मिश्रण है, जिसने उन्हें भारतीय राजनीति में सबसे प्रभावशाली वक्ताओं में खड़ा कर दिया है। यही कारण है कि उनके भाषण सिर्फ सुनाए नहीं जाते, बल्कि याद रखे जाते हैं — और आगे भी राजनीति के मंच पर गूंजते रहेंगे।

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