सतना में गोलीकांड—कानून-व्यवस्था पर उठते सवाल

सतना शहर में चाय की टपरी पर हुआ खूनी विवाद केवल एक आपराधिक वारदात भर नहीं है, बल्कि यह उस गहरी सच्चाई को उजागर करता है कि छोटे-से-छोटे विवाद किस तरह जानलेवा हिंसा में बदल जाते हैं और पुलिस-प्रशासन समाज में अपराध की इस संस्कृति पर अंकुश लगाने में नाकाम दिख रहा है।

सिद्धार्थ नगर क्षेत्र में किशोर सत्यम शुक्ला की गोली लगने से हुई मौत ने पूरे शहर को दहला दिया। हैरानी की बात है कि महज मोबाइल छीनने जैसी बात से शुरू हुआ विवाद चंद मिनटों में गोलियों तक पहुँच गया। इससे साफ है कि असामाजिक तत्वों में न तो कानून का डर है और न ही प्रशासन की पकड़ इतनी मजबूत है कि वे ऐसी घटनाओं से पहले ही भयभीत हों।

यह सवाल उठना लाज़मी है कि शहर में अवैध हथियार आखिर कहाँ से आ रहे हैं। कट्टे और पिस्तौल के बल पर गुंडागर्दी करने वाले अपराधी न केवल आम नागरिकों की जान के लिए खतरा हैं, बल्कि यह भी संदेश देते हैं कि पुलिस का खौफ़ उनके लिए बेमानी हो चुका है। क्या स्थानीय खुफिया तंत्र पूरी तरह निष्क्रिय हो चुका है? क्या पुलिस केवल घटना घटने के बाद औपचारिक कार्रवाइयों तक ही सीमित रह गई है?

सतना जैसे शहरों में बढ़ती आपराधिक घटनाएँ यह भी दर्शाती हैं कि कानून-व्यवस्था की प्राथमिकताओं में आम जनता की सुरक्षा कहीं पीछे छूट गई है। अपराधियों का दुस्साहस इस बात का संकेत है कि उन्हें राजनीतिक संरक्षण भी मिल रहा है या फिर पुलिस की कार्रवाई दिखावे भर की है।

एक और गंभीर पहलू यह है कि इस घटना का शिकार 17 वर्षीय सत्यम शुक्ला बना, जो बीच-बचाव करने आया था। यह तथ्य समाज के लिए बेहद चिंताजनक है। क्या अब इंसाफ़ और समझाइश देने की कोशिश करने वालों की भी जान की कोई गारंटी नहीं रह गई? यह सवाल सीधे-सीधे हमारी सामाजिक संरचना पर चोट करता है।

ज़रूरत इस बात की है कि इस गोलीकांड को सामान्य अपराध मानकर फाइलों में दबा न दिया जाए। पुलिस को न केवल आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, बल्कि अवैध हथियारों की आपूर्ति करने वाले नेटवर्क को भी जड़ से समाप्त करना होगा। इसके अलावा स्थानीय प्रशासन और सरकार को भी जवाब देना होगा कि नागरिकों की सुरक्षा आखिर उनकी प्राथमिकताओं में कब शामिल होगी।

सतना की यह घटना चेतावनी है कि यदि हालात को अभी नहीं सँभाला गया, तो चाय की टपरी से लेकर सार्वजनिक स्थलों तक, हर जगह भय और असुरक्षा का वातावरण आम जीवन का हिस्सा बन जाएगा। और यह लोकतांत्रिक समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

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