आरएसएस ने एक परामर्शदात्री संस्था का गठन भी किया है जिसे भारतीय शिक्षा नीति आयोग कहा जाता है। इस आयोग की नीतियां ही मोदी सरकार के भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सुधार के प्रयासों का आधार हैं। शिक्षा नीति आयोग, भारत की शिक्षा व्यवस्था का ‘भारतीयकरण’ करना चाहता है।
अब तो भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर), राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) आदि के मुखिया ऐसे लोग हैं जिनका इन संस्थाओं के कार्यक्षेत्र से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें ये पद केवल इसलिए दिए गए हैं क्योंकि वे सत्ताधारी दल की विचारधारा में यकीन रखते हैं।
वाई. सुदर्शन नाम के एक ‘विद्वान’ को भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का मुखिया बनाया गया था। वे यह साबित करने पर आमादा थे कि हमारे महाकाव्य रामायण और महाभारत ऐतिहासिक घटनाक्रम का वर्णन करते हैं। मतलब यह है कि जो महाभारत और रामायण में लिखा गया है वह सचमुच हुआ था। इस सरकार में तार्किक सोच और वैज्ञानिक पद्धति के लिए कोई जगह नहीं है। सरकार बाबा रामदेव को जमकर बढ़ावा दे रही है। बाबा रामदेव की कंपनी द्वारा बनाई गई एक दवा कोरोनिल को कोविड-19 का इलाज बताया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल में रामदेव को चेतावनी दी है कि वे अपने विज्ञापनों में हवाई दावे न करें और दूसरी चिकित्सा पद्धतियों को कटघरे में खड़ा न करें।
पिछले कुछ सालों से भारतीय विज्ञान कांग्रेस प्रकाशन के लिए ऐसे शोध प्रबंध स्वीकार कर रही है जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और जो केवल पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं। इस स्थिति से व्यथित होकर कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों ने एक साथ मिलकर एक संयुक्त बयान जारी किया है, जिसमें सरकार से यह अनुरोध किया गया है कि वह वैज्ञानिक सोच और वैज्ञानिक पद्धतियों को कमज़ोर करने से बाज़ आये। वैज्ञानिकों का कहना है कि ‘‘सरकार का यह दृष्टिकोण उसके द्वारा अवैज्ञानिक एवं अपुष्ट दावों को बढ़ावा देने, भारत के प्राचीन ज्ञान को बढ़ाचढ़ाकर बताने और कोविड-19 महामारी के दौरान किए गए कुछ निर्णयों से स्पष्ट है।’’
वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया गया है कि वैज्ञानिक, शिक्षाविद और नीति निर्माता एक साथ मिलकर विज्ञान के प्रति निष्ठा में क्षरण को रोकने व देश में वैज्ञानिक सोच और तार्किक व साक्ष्य-आधारित आख्यान को बढ़ावा देने के लिए कार्य करें।