बाढ़ नियंत्रण में ड्यूटी, फिर भी स्कूल में हाज़िरी — सिस्टम की खामियों का बड़ा खुलासा

नर्मदापुरम में शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करने वाला चौंकाने वाला मामला सामने आया है। बाढ़ नियंत्रण कार्य में तैनात एक शिक्षक की हाज़िरी स्कूल में भी दर्ज हो रही है। विभागीय आदेश, सरकारी रिकॉर्ड और अधिकारियों के बयान — तीनों के बीच का यह विरोधाभास न सिर्फ सिस्टम की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि सरकारी स्कूलों की साख पर भी सीधा वार करता है।

नर्मदापुरम। शिक्षा विभाग और प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा करने वाला मामला सामने आया है। माध्यमिक शाला सेंदरवाड़ा के शिक्षक ललित सोनी के पास विभागीय आदेश मौजूद है, जिसमें स्पष्ट लिखा है कि 16 जुलाई 2025 से 16 सितंबर 2025 तक उनकी ड्यूटी बाढ़ नियंत्रण कार्य में लगाई गई है।

सवाल — हाज़िरी स्कूल में कैसे दर्ज हो रही है?
सूत्रों के अनुसार, ललित सोनी 1 जुलाई 2025 से ही स्कूल नहीं आ रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि 1 अगस्त 2025 से उनकी सेवाएँ दोनों जगह — स्कूल और बाढ़ नियंत्रण — में दर्ज दिख रही हैं। यह स्थिति प्रशासनिक रिकॉर्ड की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करती है। गौर करने वाली बात यह है कि शिक्षक की दोनों जगह हाजरी जरूर लग रही है लेकिन जब denvapost की टीम देखने पहुंची तो शिक्षक दोनों जगह नहीं मिले और मिलने इंकार भी कर दिया। बस मोबाइल पर ही बात की।

ललित सोनी का कहना है, “मेरे पास बाढ़ नियंत्रण ड्यूटी का लिखित आदेश है। मैं आदेश का पालन कर रहा हूँ, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है।”
Denvapost के पाठकों को यह ज्ञात होगा कि पिछले 19 वर्षों से निर्वाचन शाखा में पदस्थ एक शिक्षक को विभाग वापस स्कूल नहीं ला सका, तो ऐसे मामलों का होना आम बात है।

पुराने मामलों की कहानी
एक आरटीआई के जवाब में वर्ष 2023 में सामने आया था कि नर्मदापुरम जिले में 47 शिक्षक ऐसे थे, जो वर्षों से अन्य विभागों में अटैच थे, जबकि उनके वेतन और हाज़िरी स्कूल के रिकॉर्ड में दर्ज होते रहे। इसके बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।


व्यवस्था की पुरानी बीमारी
स्थानीय सूत्र बताते हैं कि अगर इस मामले की गहराई से जांच हो, तो कई शिक्षक ऐसे मिलेंगे जो विभिन्न सरकारी कार्यालयों में कार्यरत हैं, पर उनकी हाज़िरी स्कूल में भी दर्ज होती है। शिकायत होने पर विभागीय कार्यवाही केवल खाना पूर्ति बनकर रह जाती है।

जनता का सवाल
गांव और ब्लॉक स्तर पर लोगों का कहना है कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार की बातें केवल कागज़ों में सीमित रह जाती हैं। ऐसी अनियमितताओं से बच्चों की पढ़ाई पर सीधा असर पड़ता है और सरकारी स्कूलों की साख पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।

BEO का बयान भी सवालों के घेरे में

ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) सुषमा पिपरे का कहना है, “हमारे पास वेतन पत्रक आता है, उसी के आधार पर शिक्षकों का वेतन होता है। अगर कोई शिक्षक शाला में नहीं आ रहा है, तो इसकी जानकारी प्रधान पाठक एवं संकुल प्राचार्य को होती है।” आश्चर्य की बात यह है कि ललित सोनी जिस संकुल में आते हैं, उसकी प्राचार्य स्वयं सुषमा पिपरे ही हैं। यानी इस पूरे मामले में जिम्मेदारी का दायरा सीधे उनके कार्यक्षेत्र से जुड़ा हुआ है।

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