गुरुग्राम/हैदराबाद | विशेष रिपोर्ट — Denvapost
भारत में तेजी से फैल रहे डिजिटल साइबर अपराधों के बीच गुरुग्राम की एक अदालत ने 5.8 करोड़ रुपये की साइबर ठगी के आरोपी, हैदराबाद के पूर्व सहकारी बैंक निदेशक समुद्रला वेंकटेश्वरलु की दूसरी जमानत याचिका खारिज कर दी है। अदालत ने इसे एक “सामाजिक-आर्थिक अपराध” बताया और कहा कि इसका समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला 2024 में दर्ज 1.23 लाख साइबर धोखाधड़ी मामलों में से एक है, जिनमें कुल 1,935 करोड़ रुपये की ठगी हुई थी। इस विशेष केस में आरोपियों ने एक शीर्ष विज्ञापन पेशेवर के एचडीएफसी बैंक अकाउंट से ₹5.8 करोड़ रुपये मिनटों में तीन स्तरों में स्थानांतरित कर दिए:
1. झज्जर (हरियाणा) के एक कॉलेज छात्र के ICICI खाते में
2. देश भर के 10 बैंकों में फैले 25 खातों में
3. और फिर आगे 141 खातों में।
इन 25 खातों की दूसरी परत में हैदराबाद के श्रीनिवास पद्मावती को-ऑपरेटिव अर्बन बैंक के कम से कम 11 खाते थे, जहां समुद्रला निदेशक था।
अदालत ने क्या कहा?
21 जुलाई को न्यायिक मजिस्ट्रेट अरुण डबला ने आदेश में कहा:
> “यह अपराध गंभीर प्रकृति का है… यह निर्दोष और गरीब नागरिकों की मेहनत की कमाई को हड़पने वाला अपराध है। यदि ऐसे मामलों में नरमी दिखाई जाती है, तो इससे समाज में गलत संदेश जाएगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि आरोपी ने अपने बयान में दावा किया है कि बैंक का अध्यक्ष भी इस घोटाले में शामिल हो सकता है, और उसे भी जांच में शामिल किया जाना चाहिए।
कैसे हुआ पैसा ट्रांसफर?
इस घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग के लिए “म्यूल अकाउंट्स” का इस्तेमाल हुआ — यानी वे खाते जो दूसरों के नाम पर खोले गए और जिनका उपयोग तेजी से पैसा घुमाने के लिए किया गया।
इन खातों में कई गरीब और अनपढ़ लोग जैसे दर्जी रॉय्या शारदा और बढ़ई एन. रविंदर शामिल हैं, जिनसे समुद्रला ने नौकरी का झांसा देकर खाली चेकबुक और दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए थे।
अब तक क्या हुआ है?
29 अप्रैल को गुरुग्राम की SIT ने समुद्रला को गिरफ्तार किया।
वह पहले भी सितंबर 2024 से जनवरी 2025 तक साबरमती और फिर राजकोट सेंट्रल जेल में बंद रह चुका है।
18.5 लाख रुपये की बरामदगी अब तक हो चुकी है, जबकि बड़ी रकम अभी गायब है।
बड़े खुलासे और राष्ट्रीय चेतावनी
I4C (भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र) ने गुरुग्राम SIT को सतर्क किया कि समुद्रला से जुड़े वही 11 बैंक खाते 181 अन्य साइबर शिकायतों में भी संदिग्ध हैं।
एक शिकायत में दावा है कि केवल तीन महीने में ₹21 करोड़ इन्हीं खातों से गुजरे।
बैंक अध्यक्ष की भूमिका संदिग्ध?
जब द इंडियन एक्सप्रेस ने बैंक अध्यक्ष पी. श्रीनिवास कुमार से पूछताछ की, तो उन्होंने कहा कि उन्हें अदालत के आदेश की कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा:
“अगर कोई अधिकारी मुझसे संपर्क करता है, तो मैं देखूँगा क्या करना है।”
विश्लेषण | Denvapost व्यू
यह मामला न केवल भारत में साइबर फ्रॉड की बढ़ती परिष्कृत तकनीकों को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि कैसे बैंकिंग व्यवस्था और ग्रामीण सहकारी संस्थाएं, जो आम लोगों की जमा पूंजी की संरक्षक हैं, इन घोटालों में मूल्यवान कड़ी बनती जा रही हैं।
इस केस में अदालत का रूख यह स्पष्ट करता है कि अब देश की न्यायपालिका साइबर अपराधों को ‘सफेदपोश घोटाले’ मानते हुए उन पर कठोर कार्रवाई के पक्ष में है।
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