उज्जैन के कुंडेश्वर मंदिर में स्थापित भगवान कुबेर की प्रतिमा।
कुबेर की नाभि में इत्र लगाने से मिलती है समृद्धि
श्रीकृष्ण तो द्वारका चले गए, लेकिन कुबेर आश्रम में ही बैठे रह गए। यहां कुबेर की प्रतिमा बैठी मुद्रा में है, कुंडेश्वर महादेव के जिस मंदिर में कुबेर विराजे हैं, उसके गुम्बद में श्री यंत्र बना हुआ है जो कृष्ण को श्री मिलने की पुष्टि करता है। मान्यता है कि यहां कुबेर की नाभि में इत्र लगाने से समृद्धि प्राप्त होती है। इसलिए यहां दीपावली पर्व के पहले कुबेर देव की प्रतिमा के दर्शन और नाभि में इत्र लगाने के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं।
उभरे पेट पर मलते हैं घी
सांदीपनि आश्रम के पुजारी रूपम व्यास के अनुसार कुबेर की पूजा में उनके उभरे पेट (तोंद) पर शुद्ध घी और इत्र मला जाता है। पूजा -आरती के बाद उन्हें मिठाई का भोग लगता है। कुबेर जी ऐसी पूजा से प्रसन्न होते हैं। धनतेरस पर कुबेर का विशेष महत्व रहता है। यह कुबेर के दर्शन मात्र से धन धान्य मे वरधी होती है।
1100 वर्ष पुरानी है प्रतिमा
धनतेरस पर धन के रक्षक कुबेर का पूजन किया गया। तीखी नाक, उभरा पेट, शरीर पर अलंकार आदि से कुबेर का स्वरूप आकर्षक करता है। पुरावेत्ताओं के अनुसार यह प्रतिमा मध्य कालीन 1100 वर्ष पुरानी है। जिसे शंगु काल के उच्च कोटि के शिल्पकारों ने बनाया था। कुबेर के पूजन के लिए धनतेरस पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। धनतेरस पर देश विदेश से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।