देवास बीएनपी फर्जीवाड़ा: परीक्षा किसी और ने दी, नौकरी कोई और करता रहा तीन साल तक

देवास/नई दिल्ली – मध्यप्रदेश के देवास स्थित बैंक नोट प्रेस (BNP) में एक गंभीर भर्ती फर्जीवाड़ा सामने आया है, जिसने सरकारी नियुक्ति व्यवस्था और सुरक्षा प्रक्रियाओं की पोल खोल दी है। बीएनपी जैसी संवेदनशील संस्था में तीन साल तक एक फर्जी नियुक्ति का मामला सामने आना न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि चिंताजनक भी।

भर्ती परीक्षा दी दीपक ने, नौकरी मिली सरवन को

साल 2021 में IBPS परीक्षा में दीपक कुमार नाम के युवक ने परीक्षा दी थी। लेकिन तीन साल से सरवन कुमार नामक युवक उसी परीक्षा के दस्तावेजों के आधार पर बीएनपी में जूनियर टेक्नीशियन के पद पर नौकरी करता रहा।

पुलिस जांच में यह बात सामने आई कि सरवन ने ₹15,000 देकर दीपक से परीक्षा दिलवाई थी। नौकरी के दौरान तीन साल तक किसी को शक नहीं हुआ, और ना ही कोई पहचान-पुष्टि सही ढंग से की गई।

फोटो मिलान से फर्जीवाड़े का पर्दाफाश

मामले का खुलासा तब हुआ जब हाल में अधिकारियों ने पुरानी परीक्षा तस्वीरों से वर्तमान कर्मचारी की पहचान का मिलान किया। दोनों चेहरों में फर्क साफ नजर आया।
बैंक नोट प्रेस के मुंबई मुख्यालय से देवास बीएनपी थाने में शिकायत दर्ज कराई गई, जिसके बाद पुलिस ने जांच शुरू की।

टीआई अमित सोलंकी की पुष्टि

बीएनपी थाने के प्रभारी टीआई अमित सोलंकी ने पुष्टि की कि परीक्षा देने वाला युवक दीपक कुमार था, जबकि नौकरी सरवन कुमार नामक व्यक्ति कर रहा था। मामले में धोखाधड़ी, सरकारी दस्तावेज़ों के दुरुपयोग, और फर्जी नियुक्ति के आरोपों पर पुलिस ने मामला दर्ज किया है।

क्या किसी नेटवर्क की भूमिका?

जांच अधिकारियों का मानना है कि यह सिर्फ एक व्यक्ति का कृत्य नहीं, बल्कि संभवतः एक पूरे रैकेट का हिस्सा हो सकता है जो सरकारी भर्तियों में पैसे लेकर प्रॉक्सी परीक्षा दिलवाता है और फर्जी नियुक्तियाँ कराता है।

यह भी सवाल उठता है कि बीएनपी जैसी उच्च-संवेदनशील इकाई, जहाँ भारत सरकार की मुद्रा छपती है, वहाँ आईडी वेरिफिकेशन, फोटो मिलान, और सुरक्षा जांच की प्रक्रियाएँ इतनी लचर कैसे रहीं?

एक सिस्टमिक विफलता

यह मामला सिर्फ एक कर्मचारी की फर्जी भर्ती का नहीं, बल्कि सिस्टम की गहरी विफलता का उदाहरण है। यह सवाल उठाता है कि कहीं और भी तो ऐसे फर्जी नियुक्त लोग संवेदनशील संस्थाओं में काम तो नहीं कर रहे?

सरकार और जांच एजेंसियों को इस मामले में सख्त और तेज़ कार्रवाई करनी चाहिए — न केवल दोषी कर्मचारियों पर, बल्कि उन अधिकारियों पर भी जिन्होंने इस घोर लापरवाही को तीन साल तक अनदेखा किया।

(यह रिपोर्ट एजेंसी इनपुट और स्थानीय पुलिस सूत्रों के आधार पर तैयार की गई है)

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