Denvapost Exclusive : आखिर क्यों नहीं चुन पा रही है बीजेपी अपना अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष!

इससे राज्य इकाइयों में गहरे तक बने बिखराव का पता चलता है, जो कभी पार्टी की सबसे मजबूत जमीनी इकाई हुआ करती थीं। 2024 के चुनावों में इस ढांचे की दरारें दक्षिणी और पूर्वी भारत में खासतौर से उभरकर दिखाई दीं। राज्यों के स्तर पर सांगठनिक पुनर्गठन में ऐसा विलंब बीजेपी के कभी बेदाग कमान और नियंत्रण ढांचे पर मंडरा रही अनिश्चितता का प्रतीक है। जिस मॉडल ने उसे कभी चुनावी प्रभुत्व दिलाया था, वही आज जब बातचीत, आम सहमति और समन्वय की सबसे ज्यादा जरूरत है, कमजोर साबित हो रहा है।

उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे पारंपरिक रूप से मजबूत राज्यों में मौजूदा सत्ता केन्द्रों और उभरती स्थानीय नेताओं की महत्वाकांक्षाओं के बीच जारी जमीनी जंग भी नियुक्ति प्रक्रिया शिथिल करने का कारण बनी है।

वैचारिक रस्साकशी

प्रक्रियागत बाधाओं से परे एक और भी सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण कारक छिपा है: बीजेपी और उसके वैचारिक जनक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच अनसुलझे सत्ता समीकरण। बीजेपी नेतृत्व- खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह- कथित तौर पर मजबूत चुनावी साख वाले किसी राजनीतिक दिग्गज को आगे बढ़ाने के पक्ष में हैं। लेकिन दूसरी ओर, ऐसा कहा जाता है कि आरएसएस की प्राथमिकता संगठनात्मक कार्यों में दक्ष और वैचारिक प्रतिबद्धता वाले किसी नेता पर ही है।

यही मतभेद गतिरोध का असल कारण बताया जा रहा है। शीर्ष पदाधिकारियों के बीच अनौपचारिक विमर्श के कई दौर भी आम सहमति नहीं बना सके। सही है कि भाजपा अब वाजपेयी-आडवाणी युग की तरह आरएसएस के इशारों पर नहीं नाचती, लेकिन वह संघ के नैतिक वीटो से मुक्त भी नहीं है।

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