Denvapost Exclusive : पोषण ट्रैकर एप: तकनीक ने बढ़ाई पारदर्शिता या खड़ी की दीवारें?

नर्मदापुरम। महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से लागू की गई पोषण ट्रैकर एप व्यवस्था, व्यवहारिक धरातल पर कई चुनौतियों से जूझ रही है। जिले की करीब 1470 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के सामने यह नई तकनीक सुविधा से अधिक बाधा बनकर सामने आई है।

तकनीक और ज़मीनी वास्तविकताओं में टकराव

नई व्यवस्था में लाभार्थियों को पोषण आहार वितरण से पहले उनके चेहरे की पहचान और आधार लिंक मोबाइल नंबर पर भेजे गए ओटीपी के जरिए सत्यापन किया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में न तो नेटवर्क की सुविधा है और न ही लाभार्थियों के पास अपडेटेड मोबाइल नंबर। साथ ही, जिन कार्यकर्ताओं के पास विभाग द्वारा पहले दिए गए स्मार्टफोन हैं, उनकी तकनीकी गुणवत्ता इतनी कमज़ोर है कि न तो चेहरा स्कैन हो पाता है और न ही एप सुचारू रूप से काम करता है।

प्रमुख व्यवहारिक समस्याएं

आधार लिंक मोबाइल नंबर की अनुपलब्धता या सिम गुम होना।

दूरस्थ गांवों में नेटवर्क की अनुपस्थिति।

गर्भवती महिलाओं का केंद्र तक न पहुंच पाना।

पुराने मोबाइल की कैमरा और प्रोसेसिंग क्षमता सीमित।

एप की धीमी गति के कारण समय की बर्बादी।

ओटीपी न आने से वितरण बाधित।

सिर्फ माताओं को ही मिलेगा पोषण आहार

पहले पोषण आहार परिवार के किसी भी सदस्य को दिया जा सकता था, लेकिन अब एप के जरिए सिर्फ माताओं की फेस स्कैनिंग अनिवार्य कर दी गई है। इससे वे महिलाएं जो किसी कारणवश केंद्र नहीं पहुंच पातीं, उन्हें पोषण आहार नहीं मिल पा रहा है। यह परिवर्तन खुद एक नई समस्या बन गया है।

निजी खर्च में झांकता सरकारी भार

सुमित्रा अहीरवाल, जिला अध्यक्ष, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता संगठन के अनुसार: “शासन ने जो मोबाइल पहले दिए थे, अब वो तकनीकी रूप से अनुपयुक्त हो चुके हैं। नेटवर्क नहीं है, ओटीपी नहीं आता, एप हैंग होता है – ऐसे में हम पर नया मोबाइल खरीदने का दबाव आ रहा है।”

ऐसे काम करता है एप

1. लाभार्थी का चेहरा स्कैन किया जाता है।

2. उसके आधार से लिंक मोबाइल नंबर पर ओटीपी भेजा जाता है।

3. ओटीपी सफलतापूर्वक दर्ज होने के बाद ही पोषण आहार वितरण की पुष्टि होती है।

लेकिन जब मोबाइल नंबर बंद हो, बदले जा चुके हों या नेटवर्क ही न हो — तब यह पूरी प्रक्रिया रुक जाती है और सबसे अधिक प्रभावित होती है वह महिला या बच्चा जिसके लिए यह योजना बनाई गई थी।

क्या चाहिए सुधार के लिए?

विभाग को कार्यकर्ताओं को नई तकनीकी सुविधाएं (उन्नत स्मार्टफोन, नेटवर्क आधारित समाधान) देना होगा।

नेटवर्कविहीन क्षेत्रों के लिए ऑफ़लाइन वेरिफिकेशन मोड शुरू किया जाए।

ओटीपी आधारित प्रक्रिया के विकल्प के रूप में फिजिकल वेरिफिकेशन या रजिस्टर सिस्टम लागू किया जाए।

योजना के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, लचीलापन और व्यावहारिकता लाई जाए।

तकनीकी नवाचार आवश्यक है, लेकिन वह तभी सार्थक होता है जब नीतियों की ज़मीन हकीकत से जुड़ी हो। पोषण ट्रैकर एप की वर्तमान प्रणाली लाभ की बजाय लाचारियों और तकनीकी उलझनों का पर्याय बनती जा रही है। ज़रूरत है कि नीति निर्माता जमीनी रिपोर्टों को गंभीरता से लें और व्यवस्था को ऐसा स्वरूप दें, जो लाभार्थी केंद्रित हो, न कि केवल डाटा केंद्रित।

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