Denvapost Exclusive : नर्मदापुरम में पटवारियों के ट्रांसफर में भारी गड़बड़ी: नीति, नियम, नैतिकता सब ताक पर!

एक जमाना था जब ‘स्थानांतरण’ सरकारी सेवा का सामान्य हिस्सा माना जाता था। लेकिन अब यह कमाई का सबसे प्रभावी माध्यम बन गया है। यह बात मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम जिले में पटवारियों के हालिया स्थानांतरण को देखकर सहज सिद्ध होती है। नीति, योग्यता, सेवा रिकॉर्ड—सब कुछ किनारे। प्राथमिकता है तो बस “किसे लाभ देना है और किसे दंडित।”

नर्मदापुरम जिले में 443 पटवारियों के पद हैं। हालिया स्थानांतरण सूची ने राज्य शासन की स्थानांतरण नीति 2025 की आत्मा को ही छलनी कर दिया। विकलांग पटवारियों को लाभ देना तो दूर, उनको दंडित किया गया। कई ऐसे कर्मचारी, जिनकी “गृह तहसील” अन्य थी, उन्हें मनमाने तरीके से दूर फेंका गया। और जिनके पक्ष में राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण था, उन्हें गृह तहसील में जगह दिलवा दी गई।

सबसे हास्यास्पद उदाहरण “शिवपुर तहसील” का है—जो वास्तव में तहसील के रूप में अस्तित्व में ही नहीं है। ना वहां कार्यालय है, ना ही शासन से पटवारी पद स्वीकृत हैं। फिर भी ट्रांसफर सूची में सिवनीमालवा के पटवारियों को वहां भेजा गया। यह क्या एक सोची-समझी साजिश नहीं?

इतना ही नहीं, नर्मदापुरम ग्रामीण तहसील में 21 पदों पर पहले से 22 पटवारी पदस्थ हैं। इसके बावजूद 5 नए पटवारी लाकर यहां पदस्थ कर दिए गए, और एक का वेतन बनखेड़ी से निकाला जा रहा है। यह भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है?

उधर नर्मदापुरम नगर में केवल तीन हल्के हैं, लेकिन वहाँ आठ पटवारियों को नियुक्त कर दिया गया है, जबकि अन्य तहसीलों में एक पटवारी 2-3 हल्कों की जिम्मेदारी उठाए बैठा है। इससे स्पष्ट है कि “काम का बोझ” नहीं, “किसका चेहरा प्यारा है”, यह ट्रांसफर का आधार बन चुका है।

सबसे गंभीर मामला वेतन आहरण में धांधली का है। पांच पटवारियों के वेतन पर CLR व तत्कालीन कलेक्टर का स्पष्ट आदेश था कि सिर्फ नवीन भर्ती वाले पटवारियों को वेतन मिलेगा। लेकिन तत्कालीन अधीक्षक भू-अभिलेख व तहसीलदार ने इस आदेश को वर्तमान कलेक्टर से छिपाकर अपने अनुसार आदेश जारी करवाया और मनचाहे पटवारियों का वेतन मंजूर करवा लिया।

जब इस तरह के मामले सामने आते हैं, तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि—

क्या ये स्थानांतरण “नीति आधारित” हैं या “नोट आधारित”?

सवाल सिर्फ पटवारियों का नहीं है। प्रशासनिक निष्पक्षता, न्यायिक सोच, और लोकसेवा की गरिमा की बात है। और अगर इन मुद्दों पर भी शासन आंखें मूंदे रहे, तो लोकतंत्र की सेवा व्यवस्था में दीमक लग चुकी है, यह मान लेना चाहिए।

आज आवश्यकता है कि—

1. इन स्थानांतरणों की स्वतंत्र जांच हो—कमिश्नर स्तर से।

2. गृह तहसील के निर्धारण का स्पष्ट दस्तावेज जारी किया जाए।

3. हर वर्ष जिला स्तर पर स्थापना शाखा के कर्मचारियों का स्थानांतरण अनिवार्य किया जाए, ताकि स्थायी भ्रष्ट जड़ें न जम सकें।

नर्मदापुरम की यह घटना राज्य के अन्य जिलों के लिए भी आईना है। अगर आज शासन-प्रशासन ने इसका संज्ञान नहीं लिया, तो जनता का शासन में विश्वास डगमगाने से कोई नहीं रोक सकता।

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