Denvapost exclusive : क्या उपराष्ट्रपति का इस्तीफा केवल स्वास्थ्य कारणों तक सीमित है?

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने सियासी हलकों में खलबली मचा दी है। उन्होंने अपने इस्तीफे के लिए स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है, लेकिन जिस तरह से राजनीतिक प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं, उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है — क्या यह इस्तीफा केवल स्वास्थ्य तक सीमित है, या फिर इसके पीछे कोई गहराई से छिपा राजनीतिक समीकरण है?

उपराष्ट्रपति की भूमिका और धनखड़ की कार्यशैली

भारतीय संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं, और उनकी भूमिका अपेक्षाकृत तटस्थ मानी जाती है। लेकिन जगदीप धनखड़ का कार्यकाल कई मायनों में विशिष्ट रहा। वे न केवल संसदीय कार्यवाही में सख्त और स्पष्ट भूमिका में दिखाई दिए, बल्कि कई मौकों पर उन्होंने केंद्रीय मंत्रियों और सदस्यों से सीधा संवाद और तीखे सवाल भी किए।

उनकी इसी शैली को लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्षधर लोग संविधानिक साहस मानते हैं, तो वहीं कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, उनकी यह निर्भीकता सत्तारूढ़ दल के लिए असहज करने वाली थी।

कांग्रेस का तीखा सवाल

धनखड़ के इस्तीफे के कुछ ही घंटों के भीतर कांग्रेस ने बड़ा आरोप लगाया। पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह इस्तीफा “उनके बारे में तो अच्छी बातें कहता है, लेकिन उन लोगों को बेनकाब करता है जिन्होंने उन्हें चुना था।”

यह बयान सामान्य राजनीतिक प्रतिक्रिया से अधिक गहराई लिए हुए है। इससे संकेत मिलता है कि कांग्रेस इस इस्तीफे को केवल व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि संस्थागत दबाव और संभावित राजनीतिक असहमति का परिणाम मान रही है।

बैठक में अनुपस्थित नेतृत्व

एक और दिलचस्प पहलू राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की बैठक से जुड़ा है। जयराम रमेश ने दावा किया कि मंगलवार दोपहर और शाम को हुई दो बैठकों में धनखड़ खुद मौजूद रहे, लेकिन सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू दोनों ही अनुपस्थित रहे।

राजनीतिक संकेतों की दुनिया में यह अनुपस्थिति ‘सामान्य’ नहीं मानी जाती — खासकर तब, जब यह एक संवैधानिक पदाधिकारी के अंतिम बैठकों में से एक हो। यह असहमति का संकेत हो सकता है, या फिर किसी पूर्व-निर्धारित घटनाक्रम का हिस्सा।

क्या लोकतांत्रिक संस्थाएं स्वतन्त्र हैं?

धनखड़ का इस्तीफा एक बार फिर इस बुनियादी प्रश्न को सामने लाता है — क्या भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएं वास्तविक रूप से स्वतंत्र हैं?

यदि एक संवैधानिक पदाधिकारी, जिसे गैर-राजनीतिक होकर कार्य करना है, केवल इसलिए असहज हो जाए कि वह सत्ता से कुछ असहमति व्यक्त करता है, तो यह स्थिति किसी भी लोकतंत्र के लिए चेतावनी का संकेत है।

निष्कर्ष: एक इस्तीफा, कई परतें

धनखड़ का इस्तीफा चाहे स्वास्थ्य कारणों से हुआ हो या राजनीतिक असहजता के कारण, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस घटना ने सत्ता, संवैधानिक संस्थाओं और राजनीतिक मर्यादा के रिश्तों को पुनः विमर्श के केंद्र में ला दिया है।

भारत को चाहिए ऐसे उपराष्ट्रपति जो केवल शोभा के लिए न हों, बल्कि सक्रिय, विवेकशील और संविधान के प्रति प्रतिबद्ध हों। अगर ऐसे पदाधिकारी असहज महसूस करते हैं, तो यह न केवल व्यक्ति की हार है, बल्कि संविधान की भी एक असफलता है।


( प्रस्तुत विचार लेखक के निजी हैं।)

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