ग्राम पंचायत नया चूरना की गलियों में गूंजती एक आवाज़ है – “सत्ता किसकी, संचालन किसका?”
यह सवाल सिर्फ गांव का नहीं, लोकतंत्र की आत्मा का सवाल है, जहां चुने हुए जनप्रतिनिधि की भूमिका को पीछे धकेलकर, ‘सरपंच पति’ जैसे अनौपचारिक ताकतवर किरदार पंचायत पर कब्ज़ा किए बैठे हैं।
24 दिसंबर 2024 को उपसरपंच फग्गनसिंह ककोड़िया ने ग्रामवासियों के साथ मिलकर जनपद सीईओ और कलेक्टर को एक लिखित शिकायत दी थी। शिकायत में आरोप था कि पंचायत की योजनाओं में मनमानी, नियमों की अनदेखी और फंड के दुरुपयोग में सरपंच पति का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप है।
यह शिकायत अगर झूठी होती, तो इसका तत्काल खंडन या स्पष्टीकरण जारी होता। लेकिन तथ्यों की बजाय आई सिर्फ चुप्पी — पांच महीने की लंबी, गहरी, साजिश भरी चुप्पी।
इसी संदर्भ में 24 मार्च 2025 को आरटीआई कार्यकर्ता दीपक शर्मा ने दो बिंदुओं पर सूचना मांगी:
1. शिकायत की सत्यापित प्रति।
2. जनपद द्वारा की गई जांच और कार्यवाही की रिपोर्ट।
अब चार महीने बीत चुके हैं। न जवाब आया, न प्रतिवेदन। क्या यह चुप्पी अनजाने में है? शायद नहीं। यह सोची-समझी ‘नीतिगत मौन’ है, जो इस देश के लाखों गांवों में फैलते भ्रष्टाचार और संरक्षणवाद की एक झलक है।
जब RTI भी बेमानी हो जाए…
सूचना का अधिकार नागरिक का संवैधानिक औज़ार है। पर जब वही सूचना अधिकारी महीनों तक जानकारी न दें, तो यह सिर्फ नियमों की अनदेखी नहीं, लोकतंत्र के चेहरे पर एक काला धब्बा है।
क्या जनपद पंचायत माखननगर, जिला प्रशासन, और पंचायत विभाग — सभी की चुप्पी — महज़ संयोग है? या फिर कोई ऐसा ‘पंचायती गठजोड़’ है जिसे उजागर होने से बचाया जा रहा है?
लोकतंत्र के सबसे निचले पायदान पर कुंडली मारकर बैठे हैं ‘छद्म सरपंच’
आज हर पंचायत में एक निर्वाचित प्रतिनिधि होता है, पर सत्ता संभालते हैं कोई और। ‘सरपंच पति’, ‘साला जी’, या ‘मामाजी’ जैसे सत्ता के छाया पात्र ग्रामीण लोकतंत्र को लील रहे हैं। और यह सब प्रशासन की मौन सहमति से हो रहा है।
अब फैसला जनता को लेना होगा
यह सिर्फ नया चूरना की बात नहीं है। यह तो पूरे सिस्टम की पोल खोलने वाली एक मिसाल है। यदि आज इस आरटीआई पर भी प्रशासन जवाब नहीं देता, तो समझिए लोकतंत्र की सबसे मजबूत नींव – ग्रामसभा – को अंदर ही अंदर खोखला किया जा रहा है।
अब जनता को पूछना चाहिए:
किसे बचाया जा रहा है?
पंचायत में कौन असली सरपंच है?
अफसर जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं?
क्योंकि जब सरकारें जवाब देना छोड़ दें, और अफसर जांच करने से बचें — तब कलम को सवाल उठाना ही होगा।