मध्य प्रदेश में सफ़ेद बाघ सफ़ारी को लेकर छिड़ा विवाद

Whose white tiger is it? Turf war over shifting safari in MPभोपाल: मध्य प्रदेश में सफ़ेद बाघ सफ़ारी को लेकर छिड़ा विवाद गरमाता जा रहा है। मुद्दा है—1951 में रीवा के तत्कालीन महाराजा द्वारा पकड़े गए और दुनिया के लगभग सभी सफ़ेद बाघों के पूर्वज माने जाने वाले ‘मोहन’ की विरासत कौन संभालेगा। यह मामला अब प्रशासनिक सीमा बदलाव से निकलकर इतिहास, पर्यटन और राजनीतिक प्रतिष्ठा की जंग बन गया है।

7 अगस्त को मैहर ज़िला प्रशासन ने एक पत्र जारी कर मुकुंदपुर—दुनिया का एकमात्र सफ़ेद बाघ सफ़ारी स्थल—को रीवा ज़िले में शामिल करने का सुझाव दिया। प्रस्ताव में मुकुंदपुर समेत पाँच पंचायतें—आनंदगढ़, अमीन, धोबहट, परसिया और पापरा—रीवा में मिलाने की बात कही गई है। पत्र में राज्य प्रशासनिक सीमा पुनर्गठन आयोग की सिफ़ारिशों का हवाला दिया गया।

रीवा का पक्ष:
रीवा के लोग इसे “मोहन की घर वापसी” मानते हैं। उनका कहना है कि सफ़ारी उनकी ऐतिहासिक पहचान और गर्व का हिस्सा है। ‘मोहन’ के अवशेष आज भी रीवा महल संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

मैहर का विरोध:
मैहर और अमरपाटन क्षेत्र में इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध हो रहा है।

भाजपा सांसद गणेश सिंह ने इसे “सोची-समझी साज़िश” बताया।

पूर्व मंत्री रामखिलावन पटेल ने कहा कि गाँव हर हाल में मैहर में रहेंगे।

कांग्रेस नेता व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र कुमार सिंह ने उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला पर “सफ़ारी हड़पने” का आरोप लगाकर गांधीवादी सत्याग्रह और “जेल भरो” आंदोलन का आह्वान किया।

विरोधियों का आरोप है कि यह कदम विधानसभा सत्र समाप्त होने के अगले दिन उठाया गया, ताकि इस पर बहस न हो सके। ग्रामीणों को चेताया गया है कि वे हस्तांतरण के कागज़ों पर दबाव में हस्ताक्षर न करें।

फ़िलहाल कोई बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन मुकुंदपुर पर यह टकराव विंध्य क्षेत्र में राजनीतिक प्रभुत्व और सफ़ेद बाघ की ऐतिहासिक धरोहर दोनों पर दावा जताने की लड़ाई बन गया है

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