मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले से आई तस्वीरों ने स्वास्थ्य व्यवस्था की सच्चाई उजागर कर दी है। चंदला विधानसभा क्षेत्र में एक गर्भवती महिला प्रियंका को प्रसव पीड़ा होने पर परिजन एम्बुलेंस के लिए बार-बार फोन करते रहे, लेकिन एम्बुलेंस नहीं पहुँची। मजबूरी में महिला को हाथ ठेले पर लिटाकर अस्पताल ले जाया गया।
अस्पताल पहुँचने पर भी हालात बदतर निकले। बताया गया कि अस्पताल में स्टाफ मौजूद नहीं है और इलाज सुबह 8 बजे के बाद ही हो सकेगा।
यह घटना उस समय सामने आई जब जिले में एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का दौरा हुआ था। सीएम ने स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार और नए अस्पतालों की घोषणा की थी। लेकिन अगले ही दिन सामने आए इस वीडियो ने उन दावों पर सवाल खड़े कर दिए।
चंदला क्षेत्र के विधायक दिलीप अहिरवार प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री हैं। इसके बावजूद क्षेत्र में एम्बुलेंस जैसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध न होना स्थानीय प्रशासन और शासन दोनों की जिम्मेदारी पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
यह घटना केवल एक महिला की पीड़ा नहीं, बल्कि ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का प्रतीक है।
लाखों की आबादी वाले क्षेत्र में यदि प्रसव जैसी आपात स्थिति के लिए एम्बुलेंस या चिकित्सक उपलब्ध नहीं है, तो ग्रामीण इलाकों के अन्य गंभीर मरीजों की स्थिति का अनुमान सहज लगाया जा सकता है।
अस्पताल का स्टाफ न होना न केवल लापरवाही है बल्कि यह संविधान प्रदत्त “स्वास्थ्य का अधिकार” (Right to Health) की भी सीधी अवहेलना है।
जनता की नाराजगी
स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार यहां से करोड़ों रुपये का राजस्व लेती है, लेकिन सड़क, पानी, बिजली और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं अब भी अधूरी हैं।
यह वीडियो जनता के भीतर गुस्से और असुरक्षा दोनों की भावना पैदा करता है।
छतरपुर की यह घटना केवल एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की गहरी खाई को उजागर करती है।
एक ओर सरकार विकास और स्वास्थ्य सुधार की घोषणाएँ करती है, वहीं दूसरी ओर हकीकत में ग्रामीण मरीजों को हाथ ठेले पर अस्पताल ले जाना पड़ता है।
यह स्थिति न केवल निंदनीय है, बल्कि तत्काल सुधारात्मक कदमों की मांग करती है।