
मणिपुर दौरे से पहले उखरुल में भाजपा को बड़ा झटका, 43 नेताओं का सामूहिक इस्तीफ़ा। जातीय हिंसा और संगठनात्मक संकट से पार्टी पर दबाव।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi)का मणिपुर दौरा जहां शांति और विश्वास बहाली के लिए अहम माना जा रहा है, वहीं उसके ठीक पहले उखरुल ज़िले के फुंग्यार विधानसभा क्षेत्र (Phungyar Assembly Constituency) से भाजपा(BJP) के 43 पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का सामूहिक इस्तीफ़ा पार्टी की राज्य राजनीति में गहरी दरारों की ओर इशारा करता है।
1. इस्तीफ़े का समय और संदेश
इन इस्तीफ़ों का समय बेहद अहम है। प्रधानमंत्री मोदी (Prime Minister Narendra Modi) का दौरा एक ओर जनता को यह संदेश देने के लिए है कि केंद्र सरकार हालात पर नियंत्रण में है और लोगों के साथ खड़ी है। लेकिन दूसरी ओर, ठीक इसी मौके पर स्थानीय भाजपा (BJP) नेताओं का इस्तीफ़ा यह बताता है कि जमीनी संगठन में असंतोष और असुरक्षा की भावना गहराई तक मौजूद है।
नगा बहुल उखरुल जैसे इलाकों से इस तरह की नाराज़गी उभरना भाजपा के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यहां पार्टी को पहले से ही जड़ें मजबूत करने में कठिनाई रही है।
2. कारण – नेतृत्व शैली पर सवाल
इस्तीफ़ा देने वाले नेताओं ने कहा कि पार्टी में परामर्श और समावेशिता की कमी है। इसका मतलब है कि स्थानीय नेतृत्व की उपेक्षा की जा रही है और निर्णय ऊपर से थोपे जा रहे हैं।
भाजपा का संगठनात्मक मॉडल “टॉप-डाउन” (ऊपर से नीचे) काम करता है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों जैसे मणिपुर में जहां जातीय और क्षेत्रीय अस्मिताएँ बहुत गहरी हैं, वहां स्थानीय नेतृत्व और परामर्श की अनदेखी राजनीतिक असंतोष को जन्म देती है।
3. जातीय हिंसा का असर
मणिपुर की हिंसा ने भाजपा की छवि को गहरी चोट पहुँचाई है।
260 से अधिक मौतें और हजारों विस्थापित परिवार सरकार की “क़ानून और व्यवस्था” की नाकामी को उजागर करते हैं।
हिंसा के बाद से ही भाजपा के खिलाफ़ यह आरोप है कि उसने समय रहते प्रभावी हस्तक्षेप नहीं किया।
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के इस्तीफ़े और उसके बाद राष्ट्रपति शासन लगने से यह धारणा और मजबूत हुई कि राज्य में भाजपा का शासन असफल रहा।
4. नगा क्षेत्रों का असंतोष – भाजपा की चुनौती
उखरुल और अन्य नगा बहुल क्षेत्रों में भाजपा को एक राजनीतिक विकल्प के रूप में खड़ा करने की कोशिश लंबे समय से चल रही थी। लेकिन इस्तीफ़े यह संकेत देते हैं कि नगा समाज भाजपा को “अपना प्रतिनिधि” मानने को तैयार नहीं है।
नगा समुदाय परंपरागत रूप से क्षेत्रीय दलों और नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) जैसे दलों के करीब रहा है। भाजपा में शामिल होना उनके लिए एक प्रयोग था, जो अब असफल होता दिख रहा है।
5. प्रधानमंत्री मोदी की चुनौती
मोदी का यह दौरा केवल पीड़ितों को सांत्वना देने का कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह भाजपा की साख और राजनीतिक पकड़ को बचाने की कसौटी भी है।
उन्हें यह भरोसा दिलाना होगा कि भाजपा “सभी समुदायों” की पार्टी है।
लेकिन नगा क्षेत्रों से इस्तीफ़े यह संकेत दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री का संदेश पहुँचने से पहले ही संगठनात्मक संकट गहराता जा रहा है।
6. आगे का रास्ता
भाजपा के लिए मणिपुर अब सिर्फ़ सुरक्षा और शांति बहाली का मामला नहीं रहा, बल्कि यह संगठन और स्वीकार्यता की लड़ाई भी है।
यदि नगा बहुल जिलों में यह असंतोष बढ़ता गया, तो भाजपा के लिए राज्य की राजनीति में टिके रहना मुश्किल हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी का दौरा भाजपा के लिए “राजनीतिक डैमेज कंट्रोल” का अवसर है, लेकिन यह तभी सफल होगा जब स्थानीय नेतृत्व को सम्मान और समुदायों की वास्तविक चिंताओं को संबोधित किया जाए।