नई दिल्ली। देश में बुनियादी ढांचे के विकास की दिशा में कार्यरत राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं की राह में कई अड़चनें सामने आई हैं। सूत्रों के अनुसार, लगभग ₹3.9 लाख करोड़ लागत वाली करीब 580 राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं विलंबित हैं, जबकि ₹1.6 लाख करोड़ की लागत वाली 200 परियोजनाएं बोली प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी ज़मीन पर कार्य शुरू होने की प्रतीक्षा कर रही हैं।
विलंब के मुख्य कारण
भूमि अधिग्रहण में देरी – 28% मामलों में
ठेकेदारों से संबंधित विवाद / प्रदर्शन – 19% मामलों में
वन और पर्यावरणीय मंजूरी – 13% मामलों में
अन्य प्रशासनिक और तकनीकी कारण
परियोजनाओं में देरी से लागत में भारी बढ़ोतरी के साथ-साथ जनता को सुविधाओं के लाभ से भी वंचित होना पड़ता है।
सरकार के प्रयास और प्रगति
हालांकि, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने बीते डेढ़ वर्षों में उल्लेखनीय सुधार किया है। तीन वर्ष से अधिक समय से रुकी हुई परियोजनाओं की संख्या अप्रैल 2024 के 152 से घटाकर जुलाई 2025 में 81 कर दी गई है। यह सफलता परियोजनाओं की नियमित समीक्षा और बकाया मुद्दों पर तेज कार्रवाई के कारण संभव हुई है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा:
> “हमारा उद्देश्य लागत वृद्धि को रोकना और परियोजनाओं को समय पर पूरा करना है। अब हर महीने सभी निर्माण एजेंसियों की समीक्षा बैठक होती है।”
कुल प्रगति (डेटा के अनुसार):
अप्रैल 2024 में विलंबित परियोजनाएँ: 690
अप्रैल 2025 में: 686
जुलाई 2025 के अंत तक: 580
यानी 16% की कमी चालू वित्त वर्ष के पहले 4 महीनों में
बोली में देरी का असर
वर्तमान में 276 ऐसी स्वीकृत परियोजनाएं हैं, जिनकी कुल लागत ₹1.4 लाख करोड़ है, लेकिन अब तक उनके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है।
इसके पीछे एक अहम कारण है — नई नीति के तहत, किसी भी परियोजना के लिए तब तक बोली नहीं निकाली जाएगी जब तक कि कम से कम 80% ज़मीन अधिग्रहित न हो जाए। यह शर्त यद्यपि परियोजना के सुगम क्रियान्वयन के लिए है, लेकिन प्रारंभिक गति को प्रभावित कर रही है।
देरी का परिदृश्य
50% से अधिक परियोजनाएं: 6 महीने तक की देरी से
33% से अधिक परियोजनाएं: 1-3 साल तक की देरी से
कुछ परियोजनाएं: 3 साल से भी अधिक विलंबित