सबसे पहले जानते हैं कि इंसुलिन क्या होता है? इंसुलिन एक तरह का हॉर्मोन होता है, जो शरीर के अंदर प्राकृतिक रूप से बनता है और ब्लड में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने का काम करता है. ज्यादातर लोग इंसुलिन को डायबिटीज के कारण जानते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर शरीर में इंसुलिन का उत्पादन ठीक से नहीं हो या यह अपना काम ठीक से नहीं कर पाए तो व्यक्ति शुगर का पेशंट बन सकता है. बता दें कि शुगर के हर मरीज को इंसुलिन की जरूरत नहीं होती है. डायबिटीज के किन मरीजों को इंसुलिन की जरूरत पड़ती है?
इंसुलिन शरीर में क्या-क्या काम करता है?
ब्लड में शुगर की मात्रा नियंत्रित करने के अलावा इंसुलिन शरीर में फैट को सहेजने का काम भी करता है. शरीर इस सहेजे गए फैट का इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर कर लेता है. इंसुलिन शरीर की हर कोशिका तक ऊर्जा पहुंचाने का काम भी करता है यानी सीमित मात्रा में हर कोशिका तक ग्लूकोज पहुंचाता है. हमारे शरीर को एक्टिव रखने के लिए इंसुलिन का उत्पादन और इसका अब्जॉर्वशन दोनों ही जरूरी हैं. अगर इस प्रक्रिया में कोई भी दिक्कत होती है तो व्यक्ति थका हुआ और असहाय महसूस करने लगता है. इंसुलिन मेटाबॉलिजम की प्रक्रिया को सही रखने में मदद करता है.

ब्लड में शुगर की मात्रा नियंत्रित करने के अलावा इंसुलिन शरीर में फैट को सहेजने का काम भी करता है.
शरीर में कहां और कैसे बनता है इंसुलिन?
इंसुलिन का उत्पादन अग्नाश्य यानी पैनक्रियाज में होता है और कार्यक्षमता के आधार पर यह कई तरह का होता है. भोजन करने के बाद जब रक्त में शुगर और ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है, उस समय उस बढ़ी हुई शुगर को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन का स्राव होता है. अब सवाल ये उठता है कि अगर कोई व्यक्ति शुगर का मरीज हो जाता है तो इंसुलिन का इंजेक्शन लेने की जरूरत क्यों पड़ती है? दरअसल, जिन लोगों को टाइप-1 डायबिटीज होती है, उनके पैनक्रियाज में इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाएं नष्ट होने के कारण इंसुलिन नहीं बन पाता है. वहीं, जिन लोगों को टाइप-2 डायबिटीज होती है, उनके शरीर में इंसुलिन बनता तो है लेकिन यह प्रभावी नहीं होता है. ऐसे में ग्लूकोज की मात्रा नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन की जरूरत होती है.
शरीर में बनने वाला और इंजेक्शन वाला इंसुलिन एक?
डायबिटीज के मरीजों में शुगर को नियंत्रित करने कि लिए जिस इंसुलिन का इस्तेमाल किया जाता है, उसकी कार्यक्षमता शरीर में बनने वाले इंसुलिन से अलग होती है. यह भिन्नता इंसुलिन के असर के आधार पर होती है. शुगर के मरीज आमतौर पर इंजेक्शन की मदद से इंसुलिन लेते हैं. इसमें एक इंसुलिन वह होता है, जिसका इंजेक्शन लगने के 15 मिनट के भीतर असर होना शुरू हो जाता है और करीब चार घंटे तक शरीर में इंसुलिन की कमी पूरा करता है. वहीं, दूसरा इंसुलिन इंजेक्शन लगने के 30 मिनट बाद असर करता है और शरीर में 6 घंटे तक इंसुलिन की कमी पूरा करता है. एक इंसुलिन इंजेक्शन लगने के 2 घंटे बाद असर करता है और शरीर में 12 घंटे तक रहता है. चौथा इंसुलिन एक घंटे बाद असर करता है और 24 घंटे तक शरीर में रहता है.
कितने तरह के होते हैं इंसुलिन इंजेक्टर?
बाजार में कई तरह के इंसुलिन शॉट्स मिलते हैं. इनमें कई इंसुलिन पेन (Insulin Pen) पहले से भरे होते हैं और डिस्पोजेबल होते हैं. वहीं, कुछ टिकाऊ पेन माने जाते है. इन्हें नया इंसुलिन कार्ट्रिज डालकर बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है. कुछ लोग लागत या दूसरे कारणों से इंसुलिन शॉट के लिए डिस्पोजेबल सीरिंज का इस्तेमाल करते हैं. इंसुलिन सीरिंज में सुई की लंबाई आपके शरीर के प्रकार और सीरिंज की लंबाई इंसुलिन की मात्रा पर निर्भर करती है. अगर आपके शरीर में ज्यादा फैट है, तो लंबी सुई की जरूरत हो सकती है. वहीं, अगर आप एक बार में ज्यादा मात्रा में इंसुलिन इंजेक्ट करते हैं, तो आपको बड़ी सीरिंज की जरूरत होगी.

डायबिटीज के मरीजों में शुगर को नियंत्रित करने कि लिए जिस इंसुलिन का इस्तेमाल किया जाता है.
इंसुलिन जेट इंजेक्टर किसके लिए बेहतर?
इंसुलिन पंप लगातार पहने जाते हैं और इंसुलिन से भरे होते हैं जो एक पतली प्लास्टिक या मेटल केनुअला के जरिये दिया जाता है, जो त्वचा के ठीक नीचे रहता है. इन्फ्यूजन सेट आमतौर पर हर 2-3 दिन में बदल दिया जाता है. इसके अलावा इंसुलिन जेट इंजेक्टर में सुई का इस्तेमाल नहीं होता है. ये त्वचा के ठीक नीचे इंसुलिन का छिड़काव करते हैं. जेट इंजेक्टर के साथ इंसुलिन की खुराक हमेशा पेन या सीरिंज की तरह सटीक नहीं होती है, क्योंकि इंसुलिन का कुछ हिस्सा त्वचा के ऊपर रह सकता है. हालांकि, सुइयों से डरने वालों के लिए जेट इंजेक्टर अच्छा काम करता है.