न्याय की राह में ‘जाम’ – लोकतंत्र की परख

एक महीने में तीसरी बार ‘चक्का जाम’ की खबर न सिर्फ़ यातायात अवरोध की दास्तान है, बल्कि लोकतंत्र की नब्ज पर हाथ रखकर पूछने जैसा है: क्या न्याय पाने का आख़िरी रास्ता सड़कों को बंद करना ही रह गया है?

यह सवाल महज़ प्रशासनिक विफलता का नहीं, बल्कि हमारी पूरी शासन व्यवस्था और जनआकांक्षाओं के बीच बढ़ती खाई का है। ‘चक्का जाम’ या ऐसे अन्य विरोध प्रदर्शन, अक्सर हताशा की वह चरम अभिव्यक्ति होते हैं, जब लोगों को लगने लगता है कि उनकी आवाज़ सुनने के लिए कोई संवाद-मंच बचा ही नहीं है।

व्यवस्था पर उठते सवाल सही हैं, पर समाधान?

बार-बार के जाम निस्संदेह आम नागरिक की दिनचर्या बाधित करते हैं, आपातकालीन सेवाओं के लिए ख़तरा पैदा करते हैं और आर्थिक नुकसान का कारण बनते हैं। यह विडंबना ही है कि न्याय की मांग करने वाले प्रदर्शन स्वयं कई लोगों के लिए अन्याय का कारण बन जाते हैं।

पर सवाल यह भी है कि जब शांतिपूर्ण याचनाएं, ज्ञापन और प्रशासनिक शिकायत दर्ज कराने के रास्ते बार-बार अवरुद्ध होने का अहसास दिलाएं, तो लोगों के पास विकल्प क्या बचता है? क्या व्यवस्था इतनी संवेदनशील और प्रतिक्रियाशील नहीं हो सकती कि समस्याओं का समाधान उनके विस्फोट का रूप लेने से पहले ही हो सके?

एक जिम्मेदार लोकतंत्र की पहचान
एक स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान यह नहीं कि उसमें विरोध न हों। पहचान यह है कि विरोध की आवाज़ों को सुनने, समझने और उन पर कार्रवाई के लिए मज़बूत, पारदर्शी और त्वरित संस्थागत तंत्र मौजूद हों। जब ये तंत्र कमज़ोर पड़ते हैं या उन पर जनता का भरोसा डगमगाता है, तो सड़कें ही अदालत बन जाती हैं।

यह समय प्रशासन के लिए केवल यातायात खोलने का नहीं, बल्कि जन-असंतोष के मूल कारणों तक पहुंचने का है। दण्ड-व्यवस्था से अधिक, संवाद-व्यवस्था को मज़बूत करने की आवश्यकता है। हर ‘चक्का जाम’ के पीछे कोई न कोई ऐसा मुद्दा ज़रूर होता है, जिसे लंबे समय से नज़रअंदाज़ किया गया हो।

‘चक्काजाम’ आख़िरी रास्ता नहीं होना चाहिए। यह लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी संकेत है, जो बता रहा है कि हमारी शिकायत निवारण व्यवस्था में गंभीर रिसाव है। इसका समाधान केवल विरोध को दबाने में नहीं, बल्कि उन कारणों को दूर करने में है जो लोगों को सड़क पर ला खड़ा करते हैं। एक परिपक्व लोकतंत्र वही है जहाँ ‘चक्का जाम’ आख़िरी विकल्प न रह जाए, बल्कि पहली सुनवाई ही अंतिम होने का भरोसा दिला सके। यही इस ‘जाम’ से निकलने का असली रास्ता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This will close in 0 seconds

error: Content is protected !!