
मध्यप्रदेश सरकार जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर करोड़ों रुपये खर्च करने और एंबुलेंस व्यवस्था को आधुनिक बताने का दावा करती है, वहीं मऊगंज ज़िले से आई दो तस्वीरें इन दावों को नंगा कर देती हैं। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि सिस्टम की घोर नाकामी का सबूत हैं।
एंबुलेंस न होने पर महिला को ठेले पर ढोया
पहली तस्वीर मऊगंज सिविल अस्पताल की है। एक महिला, जो लाडली बहना योजना की हितग्राही बताई जा रही है, गंभीर हालत में अस्पताल लाई जानी थी। लेकिन हालात यह रहे कि न तो एंबुलेंस मिली और न ही स्ट्रेचर। मजबूर परिजनों ने ठेले पर महिला को लादकर अस्पताल पहुंचाया। अस्पताल गेट पर ठेला खड़ा होना ही स्वास्थ्य विभाग की असली सच्चाई बयान करता है।
शव को चारपाई पर लेकर 5 किलोमीटर चले ग्रामीण
दूसरी तस्वीर हनुमना जनपद की ग्राम पंचायत जमुई से आई। 45 वर्षीय शंकर पांडेय की मौत के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल ले जाना था। लेकिन न तो गांव में सड़क की सुविधा है, न वाहन और न ही एंबुलेंस। मजबूर परिजन और ग्रामीणों ने चारपाई पर शव रखा और 5 किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल पहुंचे। यह दृश्य देखकर कोई भी संवेदनशील समाज शर्मसार हुए बिना नहीं रह सकता।
करोड़ों के खर्च, पर जनता बेहाल
स्वास्थ्य विभाग हर साल एंबुलेंस सेवाओं पर करोड़ों का खर्च दिखाता है। जननी एक्सप्रेस और 108 सेवा के विज्ञापन अख़बारों और टीवी पर गूंजते रहते हैं। लेकिन जब संकट की घड़ी आती है, तो ग्रामीणों को ठेले और खाट का सहारा लेना पड़ता है। सवाल यह है कि बजट और योजनाओं का पैसा आखिर जा कहाँ रहा है?
सिस्टम की असलियत
मऊगंज ज़िले की ये दोनों घटनाएँ बताती हैं कि सरकार के दावे कागज़ों तक ही सीमित हैं। यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि जनता के साथ किया जा रहा विश्वासघात है। जब एंबुलेंस सेवा, सड़क और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएँ ही न मिलें, तो योजनाओं की चमक-दमक का क्या मतलब रह जाता है?
ठेले और खाट पर मरीजों और शवों को ढोना, एक ऐसे प्रदेश की तस्वीर है जिसे “डबल इंजन की सरकार” स्मार्ट हेल्थकेयर की ओर ले जाने का दावा करती है। असलियत यह है कि यहाँ जिंदगी और मौत दोनों का सफर अभी भी ठेले और चारपाई पर ही तय हो रहा है।