बारिश के पानी का संचयन करने और पुराने जल स्रोतों को नया जीवन देने के लिए प्रदेश में 90 दिवसीय जल गंगा संवर्धन अभियान चलाया जा रहा है। इसमें प्रदेश के सभी जिलों में मनरेगा अंतर्गत खेत-तालाब, कूप रिचार्ज पिट, अमृत सरोवर सहित अन्य निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं। सीहोर जिले ने बड़े पैमाने पर खेत-तालाब बनाने की मिसाल पेश की है। इस वर्ष 2025 में प्रदेश में सबसे ज्यादा 687 से अधिक खेत-तालाब प्रारंभ हो चुके हैं।
किसानों ने भी दिखाई रुचि, सिंचाई में होगा फायदा
किसान अपने खेतों में अधिक से अधिक खेत-तालाब बनवाएं, इसके लिए जिला प्रशासन सीहोर की मेहनत रंग लाई है। खेत-तालाब को बनवाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा ग्रामीणों को जागरूक किया गया। खेत-तालाब का महत्व बताया गया। इसके परिणामस्वरूप ग्रामीणों ने पानी के महत्व को समझा और खेत-तालाब को बनवाने में रुचि दिखाई। खेत-तालाब बनने से किसानों को सिंचाई के लिए आसानी से पानी मिलेगा। साथ ही पानी बहने के बजाय जमीन में जाएगा। इससे कुओं और ट्यूबवेल का जलस्तर बढ़ेगा, जिसका फायदा किसानों को होगा।
फसलों की सिंचाई के साथ कर सकेंगे मछली पालन
सीहोर जिले की जनपद पंचायत इछावर की ग्राम पंचायत हालियाखेड़ी के ग्राम बालापुरा के किसान पीयूष, बापू सिंह, हजारीलाल, रामप्रसाद ने बताया कि पथरीली व बंजर जमीन होने के साथ पानी की सुविधा भी नहीं थी। इस वजह से फसलों की सिंचाई नहीं हो पाती थी। अब गांव में खेत-तालाब बन जाने से फसलों की दो से तीन बार सिंचाई कर सकेंगे। साथ ही मत्स्य पालन सहित अन्य कार्य भी कर सकेंगे। किसानों ने गांव में खेत-तालाब बनने से खुशी जताई है। उल्लेखनीय है कि ग्राम पंचायत हालियाखेड़ी में अब तक 7 खेत-तालाब बनाए जा चुके हैं और 5 प्रगतिरत हैं।
सिपरी सॉफ्टवेयर बना मददगार
जिला प्रशासन सीहोर के अनुसार, खेत-तालाब के निर्माण में मध्यप्रदेश राज्य रोजगार गारंटी परिषद द्वारा तैयार कराया गया सिपरी सॉफ्टवेयर मददगार बना है। सॉफ्टवेयर के माध्यम से स्थल चयन करने में आसानी हुई है। सिपरी (Software for Identification and Planning of Rural Infrastructure) सॉफ्टवेयर एक उन्नत तकनीक का सॉफ्टवेयर है। इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से जियोमार्फोलॉजी और हाइड्रोलॉजी जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके संरचनाओं का सही स्थान तय किया जा सकता है।