मोदी ने भी खुद 2019 के अपने घोषणापत्र में वादा किया था, ‘देश के कुछ हिस्सों में अवैध घुसपैठ के कारण सांस्कृतिक और भाषाई पहचान में अंतर आ गया है, इसका असर स्थानीय लोगों की आजीविका और रोजगार पर पड़ता है। हम तेजी के साथ राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को इन प्राथमिकता वाले इलाके में लागू करेंगे। भविष्य में एनआरसी देश के बाकी हिस्सों में भी बारी-बारी से लागू होगा।’
बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है। अगर यह माना जाए कि एनपीआर और एनआरसी के जरिए ऐसे लोगों की पहचान की जाएगी जो बिना दस्तावेज के रह रहे हैं, तो उन्हें वापस तो कहीं नहीं भेजा जा सकता, सिवाए इसके कि उन्हें डिटेंशन में रखा जाए और असम में ऐसा पहले ही किया जा रहा है।
मोदी के भाषण के दो दिन बाद केंद्र सरकार ने एनआरसी की दिशा में पहला कदम उठाया। केंद्रीय कैबिनेट ने 2021 की जनगणना के लिए 8,754 रुपए मंजूर किए और एनपीआर को अपडेट करने के लिए 3,941 रुपए की अतिरिक्त मंजूर दी गई।
एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सरकार ने एनपीआर के बारे में बात को टाल दिया। कहा गया कि एनपीआर में सभी लोगों को, जिनमें गैर-नागरिक भी होंगे, उन्हें गिना जाएगा और इसके लिए किसी सबूत, दस्तावेज या बायोमीट्रिक की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि सरकार देश की जनता पर भरोसा करती है।