“फीस जमा करो, चाहे बच्चा हो या न हो।”

यह कैसी अजब-गजब शिक्षा व्यवस्था है भाई! फीस जमा नहीं की तो बच्चे को बोर्ड परीक्षा नहीं, खड़े रहने की परीक्षा पास करनी होगी। क्लास में बैठने की इजाज़त नहीं, मानो कुर्सियां और बेंचेज भी बैंक की ईएमआई पर हों।
RTE का बोर्ड स्कूलों पर ऐसे टंगा है जैसे दुकानदार “GST शामिल है” का पोस्टर लगाकर भी अलग से टैक्स वसूल ले। जिले में 435 निजी स्कूल चल रहे हैं, पर नियम पालन की गाड़ी शायद बिना पेट्रोल के खड़ी है।
यह भी कमाल है – बच्चा स्कूल गया ही नहीं, लेकिन फीस ऐसे वसूली जा रही है जैसे Netflix ने सब्सक्रिप्शन ऑटो-रिन्यू कर दिया हो। अब सवाल उठता है कि ना पढ़ाई, ना पढ़ाई का माहौल – तो फीस आखिर किस चीज़ की? हवा, धूप और स्कूल के नाम की ब्रांडिंग की?
एक पेरेंट्स की दर्द भरी दास्तां सुनिए – बच्ची पिछले साल फीस न दे पाई, तो इस साल भेजा ही नहीं। लेकिन स्कूल कहता है – “फीस तो लगेगी, चाहे बच्ची हो या न हो।” अरे साहब, यह शिक्षा है या पार्किंग चार्ज कि गाड़ी खड़ी हो या न हो, पैसा तो देना पड़ेगा!
अब सवाल बड़ा है – बच्चों की पढ़ाई फीस के कारण रुक रही है, लेकिन विभाग का मौन ऐसा है मानो सब ठीक-ठाक चल रहा हो। शायद शिक्षा विभाग सोचता हो – बच्चे खड़े हैं, तो कम से कम सीधी रीढ़ तो विकसित हो रही है!