Denvapost exclusive: शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत भले ही सभी स्कूलों में शिक्षकों की पर्याप्त व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए हैं लेकिन नीमच शिक्षा मजाक बनी हुई है। नीमच जिले कई सरकारी स्कूल में तो एक भी टीचर मौजुद ही नही है। कई स्कूल ऐसे है जहां मात्र एक टीचर के भरोसे चल रहे है। विद्यालय में इन दिनों शिक्षकों की कमी के कारण एक ही कमरा में सभी वर्ग के बच्चों को बैठाकर पढ़ाया जाता है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि कैसे उन्हें शिक्षा दी जाती होगी। नीमच जिले के 6 माध्यमिक 8 प्राथमिक स्कूल ऐसे है जहां शिक्षक ही नही है। वही 6 माध्यमिक 77 प्राथमिक स्कूल एक शिक्षक के भरोसे चल रहा है। अधिकारियों का कहना है की शिक्षक विहीन व एकल शिक्षकीय विद्यालयों में में समस्या आ रही है। इसलिए शासन स्तर से जारी आदेश के बाद अतिशेष शिक्षकों की सूची तैयार कर ली गई है। प्रक्रिया लगभग पूरी कर ली गई है। शिक्षक विहीन स्कूलों में शिक्षकों को स्थानांतरित किया जाएगा। तबादला गांव में किया जाएगा। अधिकांश शिक्षक ऐसे हैं जो शहर में लंबे समय से जमें हैं। उन्हें स्थानांतरित करने की पहली सूची तैयार होगी।
सरकारी स्कूलों में बिगड़े हाल गरीब परिवार के बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगाशिक्षा के क्षेत्र में सरकार शिक्षण व्यवस्था को सुधारने के लिए तमाम प्रयास कर रही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के नाम पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन शिक्षा के बिगड़े हालात में अब तक कोई सार्थक परिवर्तन नहीं आया है। इन स्कूलों में गिर रहे शिक्षा के स्तर के चलते ही अब तक छात्र छात्राओं ने निजी स्कूलों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि नगर में सरकारी स्कूलों की अपेक्षा निजी स्कूलों में छात्र संख्या दोगुनी हो गई है। एक ओर जहां सरकारी स्कूलों में गुणवत्ताहीन शिक्षा और शिक्षकों की उदासीनता के चलते जहां लगातार छात्र संख्या घट रही है, वहीं निजी स्कूलों का प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि उन गरीब परिवार के बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा जिनके पालक व अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाने में असमर्थ हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी साक्षरता के आंकड़ों की बाजीगरी में ही खुश नजर आ रहे हैं, लेकिन इन अधिकारियों को इस बात से कोई मलाल नहीं कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर बद से बदतर होता जा रहा है। आखिर सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में सुधार लाने की जवाबदेही कब तक और कौन लेगा यह सबसे बड़ा प्रश्न है।
करोड़ों खर्च फिर भी स्कूल खाली
मध्यप्रदेश व केंद्र सरकार स्कूलों के बेहतर भविष्य को लेकर उन्हें शिक्षित करने हेतु लगातार प्रयास कर रही है। बच्चों को स्कूलों की ओर आकर्षित करने हेतु मध्याह्न भोजन वितरण, गणवेश वितरण, साइकिल वितरण, नि:शुल्क पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने से लेकर विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्ति भी प्रदान की जा रही हैं। सरकार शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए स्कूलों और शिक्षा पर प्रतिवर्ष करोड़ों खर्च कर रही है, लेकिन सतत मॉनीटरिंग और बेहतर प्रबंधन के अभाव में सरकार की मंशा पूरी होती नहीं दिख रही है। यही वजह है कि नगरीय क्षेत्र में निजी विद्यालयों की ओर छात्र छात्राएं रुख कर रहे हैं, लेकिन यहां एक ओर यक्ष प्रश्न खड़ा हो जाता है कि उन ग्रामीण क्षेत्र का क्या होगा, जहां पढ़ने वाले तथा होनहार बच्चों के लिए निजी विद्यालय भी उपलब्ध नहीं है और उन गरीब परिवार के बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा जो केवल सरकारी शिक्षा पर ही निर्भर हैं। जल्द ही कोई प्रयास नहीं किए तो स्थिति और भी खराब हो सकती है।
सरकारी स्कूलों में इसलिए घट रही छात्रों की संख्य
सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की बढ़ती उदासीनता तथा अनुपस्थिति शिक्षा के गिरते स्तर को बढ़ावा दे रहे हैं। अक्सर देखने में आता है कि कई स्कूल या तो खुलते नहीं है या फिर खुलते भी है तो समय से पहले बंद हो जाते हैं। स्कूलों में शिक्षकों की संख्या शून्य के बराबर रहती है। इससे स्कूलों में बच्चे ही नहीं पहुंचते हैं। इन तमाम सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे कक्षा आठवीं तक पहुंचने के बाद भी विशुद्ध हिंदी तक पढ़ और लिख नहीं पा रहे हैं। गणित और अंग्रेजी जैसे विषय में हालात और भी बदतर हैं। नियमित कक्षा न लगने से पढ़ने वाले बच्चे भी स्कूल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। यदा कदा यह बच्चे स्कूल पहुंच भी जाते हैं तो भी वह महज अपना समय बिता कर चले आते हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का आए दिन अनुपस्थित रहना आपस में गपशप करना आम बात है। वहीं निजी विद्यालयों में नियमित कक्षाएं लगना, बेहतर प्रबंधन और बढ़ती कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते शिक्षा में लगातार सुधार लाया जा रहा है जिससे इन विद्यालयों में छात्र संख्या बढ़ रही है।v
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत भले ही सभी स्कूलों में शिक्षकों की पर्याप्त व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए हैं लेकिन नीमच शिक्षा मजाक बनी हुई है। नीमच जिले कई सरकारी स्कूल में तो एक भी टीचर मौजुद ही नही है। कई स्कूल ऐसे है जहां मात्र एक टीचर के भरोसे चल रहे है। विद्यालय में इन दिनों शिक्षकों की कमी के कारण एक ही कमरा में सभी वर्ग के बच्चों को बैठाकर पढ़ाया जाता है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि कैसे उन्हें शिक्षा दी जाती होगी। नीमच जिले के 6 माध्यमिक 8 प्राथमिक स्कूल ऐसे है जहां शिक्षक ही नही है। वही 6 माध्यमिक 77 प्राथमिक स्कूल एक शिक्षक के भरोसे चल रहा है। अधिकारियों का कहना है की शिक्षक विहीन व एकल शिक्षकीय विद्यालयों में में समस्या आ रही है। इसलिए शासन स्तर से जारी आदेश के बाद अतिशेष शिक्षकों की सूची तैयार कर ली गई है। प्रक्रिया लगभग पूरी कर ली गई है। शिक्षक विहीन स्कूलों में शिक्षकों को स्थानांतरित किया जाएगा। तबादला गांव में किया जाएगा। अधिकांश शिक्षक ऐसे हैं जो शहर में लंबे समय से जमें हैं। उन्हें स्थानांतरित करने की पहली सूची तैयार होगी।
सरकारी स्कूलों में बिगड़े हाल गरीब परिवार के बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा
शिक्षा के क्षेत्र में सरकार शिक्षण व्यवस्था को सुधारने के लिए तमाम प्रयास कर रही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के नाम पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन शिक्षा के बिगड़े हालात में अब तक कोई सार्थक परिवर्तन नहीं आया है। इन स्कूलों में गिर रहे शिक्षा के स्तर के चलते ही अब तक छात्र छात्राओं ने निजी स्कूलों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि नगर में सरकारी स्कूलों की अपेक्षा निजी स्कूलों में छात्र संख्या दोगुनी हो गई है। एक ओर जहां सरकारी स्कूलों में गुणवत्ताहीन शिक्षा और शिक्षकों की उदासीनता के चलते जहां लगातार छात्र संख्या घट रही है, वहीं निजी स्कूलों का प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि उन गरीब परिवार के बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा जिनके पालक व अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाने में असमर्थ हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी साक्षरता के आंकड़ों की बाजीगरी में ही खुश नजर आ रहे हैं, लेकिन इन अधिकारियों को इस बात से कोई मलाल नहीं कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर बद से बदतर होता जा रहा है। आखिर सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में सुधार लाने की जवाबदेही कब तक और कौन लेगा यह सबसे बड़ा प्रश्न है।
करोड़ों खर्च फिर भी स्कूल खाली
मध्यप्रदेश व केंद्र सरकार स्कूलों के बेहतर भविष्य को लेकर उन्हें शिक्षित करने हेतु लगातार प्रयास कर रही है। बच्चों को स्कूलों की ओर आकर्षित करने हेतु मध्याह्न भोजन वितरण, गणवेश वितरण, साइकिल वितरण, नि:शुल्क पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने से लेकर विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्ति भी प्रदान की जा रही हैं। सरकार शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए स्कूलों और शिक्षा पर प्रतिवर्ष करोड़ों खर्च कर रही है, लेकिन सतत मॉनीटरिंग और बेहतर प्रबंधन के अभाव में सरकार की मंशा पूरी होती नहीं दिख रही है। यही वजह है कि नगरीय क्षेत्र में निजी विद्यालयों की ओर छात्र छात्राएं रुख कर रहे हैं, लेकिन यहां एक ओर यक्ष प्रश्न खड़ा हो जाता है कि उन ग्रामीण क्षेत्र का क्या होगा, जहां पढ़ने वाले तथा होनहार बच्चों के लिए निजी विद्यालय भी उपलब्ध नहीं है और उन गरीब परिवार के बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा जो केवल सरकारी शिक्षा पर ही निर्भर हैं। जल्द ही कोई प्रयास नहीं किए तो स्थिति और भी खराब हो सकती है।
सरकारी स्कूलों में इसलिए घट रही छात्रों की संख्या
सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की बढ़ती उदासीनता तथा अनुपस्थिति शिक्षा के गिरते स्तर को बढ़ावा दे रहे हैं। अक्सर देखने में आता है कि कई स्कूल या तो खुलते नहीं है या फिर खुलते भी है तो समय से पहले बंद हो जाते हैं। स्कूलों में शिक्षकों की संख्या शून्य के बराबर रहती है। इससे स्कूलों में बच्चे ही नहीं पहुंचते हैं। इन तमाम सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे कक्षा आठवीं तक पहुंचने के बाद भी विशुद्ध हिंदी तक पढ़ और लिख नहीं पा रहे हैं। गणित और अंग्रेजी जैसे विषय में हालात और भी बदतर हैं। नियमित कक्षा न लगने से पढ़ने वाले बच्चे भी स्कूल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। यदा कदा यह बच्चे स्कूल पहुंच भी जाते हैं तो भी वह महज अपना समय बिता कर चले आते हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का आए दिन अनुपस्थित रहना आपस में गपशप करना आम बात है। वहीं निजी विद्यालयों में नियमित कक्षाएं लगना, बेहतर प्रबंधन और बढ़ती कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते शिक्षा में लगातार सुधार लाया जा रहा है जिससे इन विद्यालयों में छात्र संख्या बढ़ रही है।