
इंदौर का महाराजा यशवंतराव अस्पताल, जिसे प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल माना जाता है, आज अपनी भयावह लापरवाही की वजह से सुर्खियों में है। नवजात बच्चों की मौत की वजह बताई जा रही है—चूहों का हमला। यह सिर्फ एक अस्पताल की लापरवाही नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर लगा कलंक है।
स्वास्थ्य ढांचे का काला सच
सोचिए, जिस अस्पताल पर गरीब और मध्यमवर्गीय लोग अंतिम उम्मीद के तौर पर भरोसा करते हैं, वहीं नवजात शिशु तक सुरक्षित नहीं रह सके। अगर अस्पताल के वार्ड में चूहे दौड़ रहे हैं और नवजातों तक पहुँच रहे हैं, तो यह साफ करता है कि सफाई, सुरक्षा और प्रबंधन सब फेल हो चुका है।
सरकार के करोड़ों रुपए के स्वास्थ्य बजट और योजनाएँ आखिर कहाँ जाती हैं?
डॉक्टरों का तर्क और सच्चाई
अस्पताल प्रशासन बच्चों की मौत को “पहले से खराब हालत” और “कम वजन” से जोड़कर पल्ला झाड़ना चाहता है। पर सवाल यह है कि क्या चूहों का अस्पताल के वार्ड में पहुँचना सामान्य बात है?
सर्जरी के बाद आईसीयू में रखे गए मासूम को चूहों से सुरक्षित न रख पाना किसी भी बहाने से नहीं ढका जा सकता।
राजनीति और संवेदनशीलता
मामले ने जैसे ही तूल पकड़ा, मानवाधिकार आयोग ने रिपोर्ट मांगी और कांग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया।
राहुल गांधी का यह कहना कि “जब आप नवजातों की सुरक्षा नहीं कर सकते तो सरकार चलाने का क्या हक है” केवल राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक कटु सच्चाई है।
विपक्ष का हमला जायज़ है, पर मूल सवाल यह है कि सत्ताधारी दल और प्रशासन मासूमों की सुरक्षा जैसे बुनियादी दायित्व पर कितनी गंभीरता दिखा रहा है।
निलंबन से आगे क्या?
अस्पताल अधीक्षक और नर्सिंग अधिकारी का निलंबन कर देना आसान है। लेकिन क्या इससे अस्पताल की व्यवस्थाएँ सुधर जाएँगी?
जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, संसाधनों का सही उपयोग नहीं होगा और व्यवस्थागत सुधार नहीं होगा, तब तक यह घटनाएँ दोहराई जाती रहेंगी।
एमवाय अस्पताल का यह मामला पूरे देश को झकझोरने वाला है।
यह केवल प्रशासनिक असफलता नहीं, बल्कि हमारी मानवता की असफलता भी है।
यदि सरकार और समाज दोनों ही इस पर गंभीरता से विचार नहीं करेंगे, तो “जनता के अस्पताल” कभी भी जनता के लिए सुरक्षित ठिकाना नहीं बन पाएँगे।