
विधि का कहना है कि उनके नाम से दर्ज बयान असल में जाली थे और उनमें दूसरों की दी गई सूचनाओं का मिश्रण था। अगर यह सच है, तो यह केवल पुलिस की लापरवाही नहीं, बल्कि गवाहों के साथ छेड़छाड़ की गंभीर आशंका है। अदालत में पेश बयान क्या हकीकत का आईना थे या फिर सुविधानुसार गढ़ी गई कहानियाँ – यह सवाल अब टालना मुश्किल है।
दूसरा बड़ा पहलू संपत्ति का है। करोड़ों रुपये के आभूषण और बैंक बैलेंस गायब होने, वसीयत से नाम काटे जाने और फ्लैट के ट्रांसफर को रोके जाने जैसी बातें यह संकेत देती हैं कि हत्या की गुत्थी के पीछे आर्थिक स्वार्थ भी गहरे पैठे हुए हैं। अभियोजन ने अब तक इंद्राणी को “लालची और महत्वाकांक्षी” बताकर कहानी गढ़ी, लेकिन विधि की गवाही बताती है कि लालच का दूसरा चेहरा भी हो सकता है।
इस गवाही का भावनात्मक पक्ष भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। एक बेटी अदालत में खड़ी होकर बता रही है कि माँ की गिरफ्तारी के बाद उसे कैसे बेदखल कर दिया गया, कैसे घर का सामान तक रिश्तेदारों में बाँट लिया गया। यह केवल हत्या का केस नहीं रहा, बल्कि टूटे रिश्तों, लालच और अवसरवाद का आइना बन चुका है।
असल सवाल यह है कि क्या न्यायालय अब इस पहलू को गंभीरता से देखेगा? या फिर मुकदमे को उसी पुराने फ्रेम में—“इंद्राणी = महत्वाकांक्षी और निर्दयी महिला”—के भीतर समेट दिया जाएगा?
शीना बोरा की मौत की गुत्थी सुलझनी ज़रूरी है, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है यह सुनिश्चित करना कि जांच किसी पूर्वाग्रह या संपत्ति विवाद की धुंध में उलझकर सच को ढक न दे।