पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
शायद शिवराज को खुद भी इस बात का आभास भी हो गया था। बावजूद इसके उन्होंने इस उम्मीद पर चुनाव में सबसे अधिक 165 सभाएं की। शायद पार्टी उन्हें एक मौका और दे दे। गौरतलब है कि भाजपा को 163 सीट के साथ बहुमत मिला। इसके बाद जीत का श्रेय लेने के लिए पार्टी संगठन और शिवराज में प्रतिस्पर्धा होती नजर आई। जहां संगठन ने जीत के लिए मोदी मैजिक को क्रेडिट दिया तो शिवराज ने लाडली बहना को। इसके साथ ही शुरू हुई मुख्यमंत्री पद की दौड़।
दिल्ली नहीं जाऊंगा
ऐसे में शिवराज का बयान कि मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा सामने आता है। बाकी सभी नेता दिल्ली दौड़ लगाते रहते हैं। इसके बाद मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा होती है। मोहन यादव को विधायक दल का नेता चुन लिया जाता है। शिवराज सिंह खुद उनके नाम का प्रस्ताव रखते हैं। इसके बाद उनका एक और बयान सामने आता है कि मांगने से बेहतर है मरना।
भावुक करने वाला दिया बयान
बुधवार को शपथ से पहले वे भावुक करने वाला एक बयान और देते हैं कि मित्रो अब विदा, जस की तस धर दीनी चदरिया। पूर्व मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद से ही सियासी चर्चाएं तेज हो गईं कि शिवराज अब आगे क्या करेंगे। क्या उन्होंने सच में विदाई ले ली है या पार्टी उन्हें कुछ और जिम्मेदारी देगी।
मेरे बारे में फैसला पार्टी करेगी
हालांकि उन्होंने खुद अपना फ्यूचर प्लान बताते हुए कहा है कि उनके बारे में फैसला वे नहीं पार्टी करेगी। अब देखना यह होगा कि पार्टी शिवराज को लेकर क्या फैसला करती है क्या लोकसभा चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें जगह दी जाती है। क्या उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाया जाता है। या पार्टी के फैसले से पहले शिवराज खुद अपने लिए कोई निर्णय लेंगे।