सीएम शिवराज सिंह चौहान
सोमवार को मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन के आखिरी दिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छठी बार और उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम मस्ताल (टीवी सीरियल-रामायण-2 के हनुमान) ने पहली बार विधानसभा चुनाव के लिए बुदनी में नामांकन किया। भोपाल से करीब 80 किमी दूर बुदनी और सलकनपुर के देवी मंदिर जाने और वहां से कोलार डैम होकर लौटने में जगह-जगह लोगों से बातचीत का मौका मिला। चुनावी मिजाज भांपने के लिए तीन जगह हुई चर्चा वाकई दिलचस्प थी। इसमें सबसे पहले बात सबसे खास स्थान बुदनी की।
दृश्य एक: 2019 में मामा को नहीं बदल पाए तो अब दूर की कौड़ी है
बुदनी में सीएम चौहान की नामांकन सभा से कुछ दूर सियासी चर्चा पूरे शबाब पर थी। बहस थी कि मोदी वाकई मामा (शिवराज) को इस बार हटा देंगे? कमल पटका लटकाए एक युवा ने शर्त लगाई कि ऐसा संभव ही नहीं है। मामा फिर मुख्यमंत्री बनेंगे। उसका तर्क था कि पिछली बार भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस से तोड़कर सरकार बनाई। तब तो मामा को बदल नहीं पाए। इस बार क्या खाक हटा पाएंगे?
एक बुजुर्ग का दावा था कि प्रधानमंत्री मोदी भी पिछड़े और मामा भी पिछड़े समाज से हैं। मोदी, मामा को हटाएंगे नहीं। 2024 में उनका खुद का चुनाव बाकी है। बाबा का कहना था कि मोदी को लगा होगा कि मामा से कुछ लोग नाराज हैं, इसलिए उन्होंने खुद को आगे कर दिया। लेकिन मामा की जगह प्रहलाद पटेल, तोमर या विजयवर्गीय को तो सीएम चेहरा घोषित नहीं किया।
दृश्य दो: तो तोमर को क्या विधायक बनाने लाए हैं
सलकनपुर माता का दर्शन करने दिमनी से आए लोगों से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर के हाल पूछ लिए। प्रह्लाद का जवाब था कि तोमर त्रिकोण में फंस में गए हैं। लेकिन बताना चाहिए था, चुनाव जीतने पर तोमर मुख्यमंत्री बनेंगे। यदि जनता को पता चले कि तोमर सीएम बनेंगे, तो पक्का जिता देती।
दूसरे का कहना था कि तोमर साहब ने किसी को उभरने का मौका ही नहीं दिया। फंस गए हैं। वह कहते हैं कि सीएम तो पिछड़ा ही बनेगा और तब प्रह्लाद पटेल का नंबर आएगा। प्रदेश की आधी से ज्यादा आबादी ओबीसी है। जीत गए और सरकार बहुमत में आ गई तो फिर सांसदी का चुनाव लड़ा देंगे। हार गए तो 66 साल के हो गए हैं।
दृश्य तीन: यूपी की तरह एमपी में भी 2-3 डिप्टी सीएम बनेंगे
सीएम के गृह क्षेत्र बुदनी के पास के कस्बे शाहगंज में शिवराज के नामांकन से लौटे लोग चौहान के इस बयान को यूपी सीएम योगी से जोड़ रहे थे कि सज्जनों के लिए मामा फूल से भी ज्यादा कोमल और दुष्टों के लिए वज्र से ज्यादा कठोर होना चाहिए।
एक सज्जन ने दावा किया कि देख लीजिएगा, इस बार एमपी में यूपी वाला ही फार्मूला लागू होगा। मंत्री-सांसद की जगह सिर्फ विधायक बनाने थोड़े लाए हैं। केंद्रीय मंत्रियों में कम के कम दो-तीन डिप्टी सीएम बना देंगे। एक विधानसभा अध्यक्ष हो जाएंगे।
इन सांसदाें के लिए भी आसान नहीं राह
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- गणेश सिंह: अपने गढ़ सतना में भाजपा पिछले 7 चुनावों में से 5 तो कांग्रेस दो बार जीती है। 2018 में हारी भाजपा ने चार बार के सांसद गणेश सिंह को प्रत्याशी बनाया है। वे मजबूत पिछड़े नेता हैं। कांग्रेस से विधायक सिद्धार्थ सुखलाल कुशवाहा हैं। बसपा से भाजपा के बागी शिवा रत्नाकर चतुर्वेदी हैं।
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- रीती पाठक (सीधी): 2018 में भाजपा ही जीती थी। एक आदिवासी पर पेशाब के विवाद में समर्थक का नाम आने पर तीन बार से विधायक केदारनाथ शुक्ला की जगह सीधी से ही सांसद रीती पाठक को उतारा है। शुक्ला भी निर्दलीय डटे हैं। कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष ज्ञान चौहान को मैदान में उतारा है।
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- राकेश सिंह (जबलपुर पश्चिम): जबलपुर पश्चिम से कांग्रेस के तरुण भनोट दो बार से विधायक हैं। उनसे पहले भाजपा लगातार पांच बार जीती। भाजपा ने चार बार के सांसद राकेश सिंह को उतारा है। भनोट-राकेश की सीधी लड़ाई मानी जा रही है।
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- उदय प्रताप सिंह, सांसद होशंगाबाद: होशंगाबाद से सांसद को भाजपा ने नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा से टिकट दिया है। यहां कांग्रेस की सुनीता पटेल विधायक हैं। दोनों पार्टियों में स्थानीय दावेदार असंतुष्ट हैं। भाजपा के एक दावेदार कांग्रेस और कांग्रेस के एक टिकट दावेदार भाजपा में जा चुके हैं।
खुद के मैदान में उलझे बड़े नाम
नरेंद्र तोमर : बसपा के त्रिकोण में फंसे
मुरैना से सांसद हैं। नरेंद्र सिंह तोमर को पार्टी ने दो बार हारी सीट दिमनी जीतने को प्रत्याशी बनाया है। 2013 में बसपा के बलवीर सिंह दंडोतिया जीते। 2018 में कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक गिर्राज दंडोतिया जीत गए। 2020 में गिर्राज सिंधिया के साथ भाजपा के हो गए और उपचुनाव में कांग्रेस के रवींद्र सिंह तोमर से हारे। नरेंद्र तोमर से चुनाव तोमर बनाम तोमर हो गया है।
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- बलवीर सिंह दंडोतिया बसपा से फिर मैदान में आए हैं। दंडोतिया ने दोनों ही तोमर का चैन छीन लिया है। दंडोतिया ब्राह्मण होते हैं।
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- यहां 26 फीसदी ठाकुर, 13.5 प्रतिशत ब्राह्मण, 12.3 प्रतिशत अहिरवार (एससी), 9.8 प्रतिशत कुशवाहा (ओबीसी) और 5.5 प्रतिशत गुर्जर (ओबीसी) बताए जाते हैं।
प्रह्लाद पटेल : पटेल से ही लड़ाई
दमोह से सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल को उनके ही विधायक भाई जालम सिंह की सीट नरसिंहपुर से मैदान में उतारा है। प्रह्लाद पांच बार के सांसद हैं। लेकिन विधान सभा चुनाव पहली बार लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने यहां से फिर लाखन सिंह पटेल को उतारा है। 2018 में लाखन सिंह पटेल जालम सिंह पटेल से 14903 वोटों से हार गए थे। इस विधानसभा सीट पर करीब 55,000 पटेल वोटर हैं।
फग्गन सिंह कुलस्ते : प्रमुख आदिवासी चेहरा
भाजपा के प्रमुख आदिवासी चेहरा केंद्रीय मंत्री और मंडला से सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते 1990 में भी इस सीट से विधायक रह चुके हैं। पिछली बार उनके भाई और भाजपा प्रत्याशी राम प्यारे कुलस्ते को कांग्रेस के अशोक मर्सकोले ने हरा दिया था। कांग्रेस ने भी विधायक का क्षेत्र बदलकर चैन सिंह बरकड़े को उतारा है।
कैलाश विजयवर्गीय : सीएम के नाम पर वोट
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय इंदौर-1 से प्रत्याशी हैं। छह बार विधानसभा चुनाव जीत चुके कैलाश को मौजूदा कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला से कड़ी चुनौती मिल रही है। पिछले चुनाव में इंदौर शहर की सिर्फ एक यही सीट कांग्रेस जीत पाई थी। यहां विजयवर्गीय के समर्थक उन्हें अगले सीएम के रूप में प्रचारित कर वोट मांग रहे हैं।
डिप्टी सीएम की चर्चा कांग्रेस के खेमे में भी है…
कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम मस्ताल के घर की भीड़ का दावा था कि विक्रम जीते तो मंत्री बनेंगे। कांग्रेस सत्ता में आई तो डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे। कमलनाथ-दिग्विजय के बीच सब तय हो चुका है।