2018 के विधानसभा चुनाव में हार-जीत के दिलचस्प रिकॉर्ड बने थे। प्रदेश की 230 सीटों में से 10 पर हार-जीत का अंतर एक हजार से कम वोटों का था, जबकि यहां नोटा ने इस अंतर से अधिक वोट हासिल किए थे। एक तरह से कहा जाए तो नोटा ने कांग्रेस और भाजपा की जीत-हार का फैसला किया था।
10 सीटों पर विजयी प्रत्याशियों के जीत की मार्जिन 6028 वोट का था। वहीं, इन 10 सीटों पर नोटा ने 18872 वोट हासिल किए थे। इससे लगता है कि अगर मतदाताओं की पसंद के उम्मीदवार होते तो हार-जीत में अंतर देखने को मिल सकता था। इन दस सीटों में से सात पर कांग्रेस और तीन पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। जाहिर तौर पर दोनों ही दल 2023 के विधानसभा चुनाव में पिछली बार मिली हार को जीत में बदलने या जीत के मार्जिन को बढ़ाने पर फोकस कर रहे हैं।
सिर्फ 121 वोट से मिली हार
प्रदेश में सबसे कम मतों से विजयी होने का रिकॉर्ड ग्वालियर ग्रामीण से कांग्रेस के प्रवीण पाठक का है। उन्होंने भाजपा के नारायण कुशवाह को 121 मतों से पराजित किया था। इस सीट पर नोटा ने 1349 मत हासिल किए थे। दूसरी सबसे कम अंतर वाली जीत सुवासरा से कांग्रेस के हरदीपसिंह डंग की थी। उन्होंने भाजपा के राधेश्याम पाटीदार को 350 मतों से हराया था। यहां नोटा ने 2976 मत हासिल किए थे।
जानिए, क्या है नोटा?
भारत में मतदाताओं को अपने चुने हुए जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार है, जिसे राइट टू रिकॉल कहते हैं। इसी तरह यदि कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है तो इनमें से कोई नहीं (नन ऑफ द अबव या नोटा) का विकल्प चुन सकते थे। इस विकल्प को 2013 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में शामिल किया था। इस तरह का विकल्प देने वाला भारत दुनिया का 14 वां देश है।
ये नेता 1000 से कम वोटों से जीते थे
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- 2018 में सबसे कम 121 मतों से ग्वालियर ग्रामीण में प्रवीण पाठक की जीत हुई थी।
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- दमोह से भाजपा के वरिष्ठ नेता जयंत मलैया भी 798 मतों से चुनाव हार गए थे।
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- कमलनाथ मंत्रिमंडल में गृह मंत्री बाला बच्चन सिर्फ 932 मतों से चुनाव जीते थे।
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- 1000 से कम वोटों से विजयी सीटों में सात कांग्रेस और तीन भाजपा को मिली थी।