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दीपक शर्मा/माखन नगर : जनपद में कई वर्ष पहले कई पंचायतों को ओडीएफ घोषित कर दिया गया था। इसके बाद ओडीएफ प्लस घोषित करते की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन अभी भी जनपद में बड़ी संख्या में लोग ऐसे में हैं जो खुले में शौच कर रहे हैं। उनके यहां पर या तो शौचालय नहीं हैं या फिर वह उपयोग के लायक नहीं हैं।
जनपद को खुले में शौचमुक्त बनाने की डगर अभी भी आसान नहीं है। ग्रामीण स्वच्छता अभियान के तहत गांवों में जागरूकता की दिशा में चल रहे तमाम कवायद के बावजूद शौचालय निर्माण की रफ्तार काफी धीमी है। लिहाजा अभी भी भारी संख्या में परिवार खुले में शौच करने को मजबूर हैं। जिससे यहां के वातावरण को विषाक्त बनाने के लिए काफी माना जा रहा है। इस दिशा में शासकीय विभाग, समाज, समूह व संगठन सकारात्मक कदम नहीं उठाती है तो आने वाला समय खुले में शौच गंभीर बीमारियों का कारण बन जाएगा।
अधिकांश नहीं हैं उपयोग लायक
समस्या यह नहीं है कि लोगों की आर्थिक हैसियत शौचालय निर्माण की नहीं है, वह इसलिए कि शौचालय निर्माण के लिए सरकारी स्तर पर अनुदान की भी व्यवस्था है। लेकिन शौचालय निर्माण नहीं होने के पीछे सबसे बड़ी वजह परंपरावादी मानसिकता है। साथ ही सरकारी स्तर पर अनुदान पाने के लिए अधिकारियों के चक्कर लगाने का पचड़ा मुख्यकारण है।
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अधिकारी व सरपंच सचिव की लापरवाही
जनपद में अभी भी एक बडी संख्या में जनता खुले में शौच कर रही है। इसेक लिए सरकार द्वारा बडे-बडे प्रयास किए गए और अधिकारियों, शिक्षकों और पुलिस को जिम्मेदारी देकर खुले में शौच करने से लोगों को मना किया गया, लेकिन जिन परिवारों के पास शौचालय नहीं हैं या उपयोग लायक नहीं हैं उनको मजबूरन शौच के लिए खुले में जाना पड़ रहा है। ऐसे में सीधे तौर पर अधिकारियों और सरपंच-सचिव की लापरवाही दिखाई देती है कि अभी तक उन घरों में शौचालय क्यों नहीं बन सके और अगर बनें हैं तो वह उपयोग के लायक क्यों नहीं है।
जनपद के ग्रामीण क्षेत्र में 30 प्रतिशत ऐसे घर हैं जहां पर शौचालय तो बने हैं, लेकिन वह शौचालय पूर्ण नहीं होने से शौचालय उपयोग नहीं हो रहे हैं। ऐसे में उन्हें मजबूरी बस खुले में शौच के लिए जाना पड़ रहा है।
जहां ओडीएफ घोषित वहीं खुले में शौच
जनपद के कई ऐसे ग्राम हैं जहां पर शासन द्वारा ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषित कर दिया है और प्रमाण पत्र भी दे दिया गया है, लेकिन उन गांव में अभी भी खुले में शौच किया जा रही है।