दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को मुंबई में शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से उनके आवास पर मुलाकात की. इस दौरान, केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सेवाओं के नियंत्रण से जुड़े केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी (आप) की लड़ाई में उद्धव का समर्थन मांगा.
1 दिन पहले क्या कहा था दिल्ली के CM ने
इस मुहिम पर दिल्ली से बाहर निकलने से पहले उन्होंने मंगलवार को एक ट्वीट कर कहा था कि मैं, देश भर में समर्थन हासिल करने के लिए दिल्ली से बाहर निकल रहा हूं. दिल्ली के लोगों के हक के लिए. सुप्रीम कोर्ट ने बरसों बाद आदेश पारित कर दिल्ली के लोगों के साथ न्याय किया, उन्हें उनके हक दिए. केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर वो सारे हक वापिस छीन लिए. उन्होंने लिखा है कि जब ये कानून राज्यसभा में आएगा तो इसे किसी हालत में पास नहीं होने देंगे. दिल्ली वालों का हक बचाए रखने के लिए सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों से मिलकर उनका साथ मांगूंगा. ये लड़ाई केवल दिल्ली वालों की लड़ाई नहीं है. ये लड़ाई भारतीय जनतंत्र को बचाने की लड़ाई है. बाबा साहिब के दिए संविधान को बचाने की लड़ाई है. न्यायपालिका को बचाने की लड़ाई है. ये लड़ाई देश बचाने की लड़ाई है. इसमें सबके साथ की अपेक्षा करता हूं. इस लड़ाई में केंद्र सरकार को अध्यादेश वापस लेने के लिए मजबूर करूंगा.
शरद पवार से भी केजरीवाल करेंगे मुलाकात
उद्धव से मुलाकात के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, ‘आप’ के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह और राघव चड्ढा तथा दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी भी केजरीवाल के साथ थीं. केजरीवाल बुधवार को ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार से भी मिलकर केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ ‘आप’ की लड़ाई में उनका समर्थन मांगेंगे. इस अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों का समर्थन जुटाने के लिए देशभर की यात्रा के तहत केजरीवाल और मान ने मंगलवार को कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की थी.
केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ केजरीवाल जुटा समर्थन
केंद्र सरकार भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और दानिक्स कैडर के अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ प्रशासनिक कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण गठित करने के वास्ते 19 मई को एक अध्यादेश लेकर आई थी. इससे एक हफ्ते पहले ही उच्चतम न्यायालय ने पुलिस, लोक सेवा और भूमि से संबंधित विषयों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सौंप दिया था. किसी अध्यादेश को छह महीने के भीतर संसद की मंजूरी मिलना आवश्यक होता है. माना जा रहा है कि केंद्र सरकार संसद के मानसून सत्र में इस अध्यादेश से संबंधित विधेयक पेश कर सकती है.