जबलपुर की संस्कारधानी इन दिनों एक खतरनाक सवाल के बीच खड़ी है – क्या सच लिखना अब जानलेवा हो गया है? वयम भारत न्यूज़ के क्राइम रिपोर्टर सुनील सेन पर हथियारों से लैस बदमाशों का हमला महज़ व्यक्तिगत रंजिश नहीं, बल्कि उस बढ़ते माफिया-सिस्टम की तस्वीर है, जो कलम को चुप कराने पर आमादा है।

हमले की साज़िश और पुलिस कार्रवाई
गढ़ा थाना क्षेत्र में पिसनहारी की मढ़िया के पास सिंघई पेट्रोल पंप पर यह हमला हुआ। नीली स्विफ्ट कार में आए चार बदमाशों ने पिस्टल, बेसबॉल और लाठी से हमला किया। पत्रकार सुनील सेन ने साफ कहा – “गोलियां नहीं चलीं, लेकिन इरादा जान से मारने का था।”
पुलिस की जांच में सामने आया कि हमले के पीछे स्मार्ट सिटी अस्पताल संचालक अमित खरे ही मास्टरमाइंड था, जिसने अपने साले तरुण ठाकुर और अन्य गुर्गों के साथ मिलकर यह प्लान बनाया था। पुलिस ने पहले मोनू और राज को पकड़ा, फिर शुक्रवार रात अमित खरे को सागर से गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया और रिमांड पर लिया।

अस्पताल संचालक या अस्पताल माफिया?
अमित खरे का विवादों से पुराना नाता है। अनियमितताओं के चलते उसके पूर्व अस्पताल पर शासन ने ताला जड़ दिया था। हाल ही में एंबुलेंस चालकों से रंगदारी वसूलने और बाहरी मरीज न लाने पर मारपीट कराने के आरोप भी लगे। सवाल यह है कि क्या मेडिकल सेवाओं के नाम पर चल रहे ऐसे अस्पताल अब उपचार के केंद्र कम और माफियाओं के गढ़ ज्यादा हो चुके हैं?
पत्रकारिता की आवाज़ दबाने की कोशिश
यह हमला किसी एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे पत्रकारिता समाज पर है। सुनील सेन लगातार ऐसे मामलों का खुलासा कर रहे थे, जिनसे शहर के सफेदपोश माफिया बेनकाब होते। हमला इस बात का प्रमाण है कि जब पत्रकार सच सामने लाते हैं तो सत्ता, धन और गुंडों के गठजोड़ को सबसे बड़ा खतरा महसूस होता है।
स्थानीय पत्रकार संगठनों ने इसे “कलम की आज़ादी पर हमला” बताया और सवाल उठाया कि अगर पत्रकार ही सुरक्षित नहीं, तो आम नागरिक कैसे सुरक्षित रहेंगे?

सिस्टम की चुप्पी और समाज का डर
घटना के बाद पत्रकार अस्पताल में भर्ती हुए तो बड़ी संख्या में साथी और नागरिक उनका हालचाल लेने पहुँचे। लेकिन इस दौरान प्रशासन की प्रतिक्रिया महज़ औपचारिक रही। पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर आरोपियों को पकड़ा, मगर क्या भविष्य में ऐसे हमले रुकेंगे? यह बड़ा सवाल है।
जबलपुर की यह घटना महज़ एक क्राइम स्टोरी नहीं है। यह उस तंत्र का आईना है, जहाँ पैसा और शक्ति सच बोलने वालों को कुचलने की ताक़त रखते हैं।
सुनील सेन पर हमला याद दिलाता है कि पत्रकारिता केवल खबर लिखने का काम नहीं, बल्कि अपराध और सत्ता की मिलीभगत से टकराने का दुस्साहस है – और यह दुस्साहस जानलेवा भी साबित हो सकता है।