मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया जिसमें RTI को कमजोर करने वालों को मिलेगा करारा जवाब मिला है। मामला: डॉ. जयश्री दुबे बनाम केंद्रीय सूचना आयोग का हैं। 03 अप्रैल 2025 को उच्च न्यायालय, जबलपुर का आया यह फैसला उन लाखों लोगों के लिए एक मिसाल है जो सरकारी संस्थानों में पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी की उम्मीद रखते हैं।
आइए, जानिए इस ऐतिहासिक फैसले के प्रमुख बिंदु:
1. नौकरी से संबंधित दस्तावेज अब ‘गोपनीय’ नहीं रहेंगे:
यदि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक पद पर नियुक्त हुआ है, तो उसकी शैक्षणिक योग्यता, अनुभव प्रमाणपत्र, चयन प्रक्रिया से संबंधित दस्तावेज, नियुक्ति आदेश आदि निजी जानकारी नहीं माने जाएंगे।
कोर्ट का स्पष्ट आदेश: ये सभी दस्तावेज जनता के लिए सार्वजनिक सूचना हैं और RTI के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं।
2. गोपनीयता का झूठा बहाना अब नहीं चलेगा:
सूचना आयोग ने इस RTI को RTI Act की धारा 8(1)(h), 8(1)(j) और 11 के तहत खारिज कर दिया था, लेकिन अदालत ने कहा:
“बिना ठोस कारण बताए सूचना को रोकना RTI अधिनियम का दुरुपयोग है।”
3. जनहित सर्वोपरि है – पारदर्शिता से समझौता नहीं:
अगर किसी नियुक्ति में भ्रष्टाचार या अनियमितता की आशंका है, तो जनता का यह जानना अधिकार है कि चयन प्रक्रिया निष्पक्ष थी या नहीं।
गोपनीयता की आड़ लेकर इन तथ्यों को छिपाया नहीं जा सकता।
4. धारा 11 की गलत व्याख्या पर रोक:
सूचना आयोग ने तीसरे पक्ष की सहमति के बिना जानकारी देने से मना कर दिया था।
अदालत ने स्पष्ट कहा:
अगर सूचना जनहित में है,
और किसी तीसरे व्यक्ति को इससे कोई वास्तविक नुकसान नहीं,
तो उसकी सहमति जरूरी नहीं है। सूचना देनी ही होगी।
5. गलत मंशा से RTI नकारने पर दंड:
कोर्ट ने पाया कि यह RTI जानबूझकर खारिज की गई थी ताकि किसी अयोग्य व्यक्ति को बचाया जा सके।
आदेश:
संबंधित जन सूचना अधिकारी पर ₹25,000 जुर्माना
यह राशि RTI आवेदनकर्ता डॉ. जयश्री दुबे को दी जाएगी
6. 15 दिन में निशुल्क सूचना उपलब्ध कराना अनिवार्य:
कोर्ट ने आदेश दिया: सभी मांगी गई सूचनाएं 15 दिनों के भीतर निशुल्क आवेदक को दी जाएं।
यह फैसला एक चेतावनी है उन सभी अधिकारियों और संस्थाओं के लिए जो RTI के तहत सूचना देने से बचते हैं।
RTI कानून का पालन न करना अब उन्हें भारी पड़ेगा।