फार्मूला 50:20 के तहत अयोग्य मानते हुए अनिवार्य सेवानिवृत्ति प्रदान किए जाने के खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई। याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक जैन ने पाया कि संवीक्षा सेवा समिति ने सरकार द्वारा निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया। एकलपीठ ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ता को 50 प्रतिशत वेतन का भुगतान करने के आदेश जारी किए हैं।
सतना निवासी दीपक बाजपेई की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि वह सामान्य न्याय तथा निशक्त कल्याण विभाग में वर्ष 1996 में भृत्य के रूप में पदस्थ हुए थे। उन्हें वर्ष 2016 में सहायक ग्रेड तीन में पदोन्नति दी गई थी। इसके बाद वर्ष 2018 में संवीक्षा सेवा समिति ने उन्हें फार्मूला 50:20 के तहत अनिवार्य सेवानिवृत्ति प्रदान कर दी। याचिका में कहा गया था कि समिति ने उनके पूरे सेवाकाल का सही ढंग से आकलन नहीं किया। उनके पूरे सेवाकाल में केवल अनाधिकृत रूप से कार्य में अनुपस्थित रहने के संबंध में चेतावनी दर्ज की गई थी, जिसे बाद में नियमित कर दिया गया था।
सरकार की ओर से बताया गया कि अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने के कारण याचिकाकर्ता को सेवा से पृथक किया गया। अनाधिकृत छुट्टियों को इस उद्देश्य से नियमित किया गया था ताकि उनकी सेवा पुस्तिका में व्यवधान न आए।
एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि सरकार के नियमों के अनुसार, जिन कर्मचारियों को पिछले पांच वर्षों के दौरान पदोन्नति मिली है, उन्हें सामान्यतः अनिवार्य सेवानिवृत्ति नहीं दी जानी चाहिए। इसके अलावा, पिछले दो वर्षों में उनकी एसीआर ग्रेडिंग 2 से कम नहीं होनी चाहिए। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि नियमों का पालन न करते हुए याचिकाकर्ता को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई है। इसके बाद एकलपीठ ने याचिका को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता के पक्ष में आदेश जारी किए।