किसानों ने अमर उजाला को बताई अपनी परेशानियां।
क्यों मजबूर हैं किसान
दूर दराज में खेती करने वाले छोटे किसान सरकारी मंडियों तक नहीं आ पाते और गांव की मंडियों में जो भी दाम मिल जाता है उस पर अपनी उपज को बेच देते हैं। इंदौर में कपास की खेती करने वाले किसानों से जब बात की तो उन्होंने बताया कि हर फसल में उन्हें बड़ा घाटा होता है। उनके पास मंडी तक उपज पहुंचाने के लिए गाड़ियां ही नहीं हैं और गाड़ी ले भी लेंगे तो इतना डीजल जल जाएगा कि बचत ही नहीं होगी।
पूरे परिवार की आमदनी 10 हजार रुपए महीना
पेटलावद में खेती करने वाले हुंकार सिंह ने बताया कि वह छह महीने में 10 क्विंटल कपास पैदा करता है। सात बीघा में उसकी खेती है और इस उपज के उसे 60 हजार रुपए के लगभग मिल जाते हैं। सरकारी की एमएसपी पर यदि वह कपास को बेचे तो उसे इस उपज के एक लाख रुपए से अधिक मिलेंगे। उसने बताया कि उसे हर उपज पर 30 से 40 हजार रुपए का घाटा होता है। उसके पूरे परिवार को दस हजार रुपए महीने की आमदनी होती है।
क्या है हल
संयुक्त किसान मोर्चा मप्र के सदस्य राहुल राज ने बताया कि सरकार को कपास और अन्य फसलों को खरीदने के लिए भी गांव गांव में केंद्र स्थापित करने चाहिए। जिस तरह से गेहूं और सोयाबीन के लिए अधिकतर जगह केंद्र हैं इसी तरह कपास और अन्य फसलों के लिए भी केंद्र होने चाहिए। छोटा किसान ट्रैक्टर, ट्राली नहीं खरीद सकता और यदि ले लेगा तो भी मंडी तक आने वहां पर बिक्री तक रुकने की उसकी क्षमता नहीं है।
मप्र सरकार जल्द किसानों की परेशानी दूर करेगी
सांसद शंकर लालवानी ने बताया कि सरकार मध्य प्रदेश में कपास के क्षेत्र में सुविधाएं बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रही है। इसके मद्देनजर, हम धार जिले में 10,000 करोड़ का कॉटन और टेक्सटाइल हब स्थापित कर रहे हैं। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले, इसके लिए हम लगातार प्रयास कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे।