भारतीय क्रिकेट टीम फिलहाल इंग्लैंड दौरे में एक गहरे संकट से जूझ रही है। चोटों से जर्जर हो चुकी टीम को एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी में 1-2 से पिछड़ने के बाद अब अपने कई प्रमुख खिलाड़ियों के बिना ही मैदान में उतरना पड़ रहा है। इस चुनौतीपूर्ण परिस्थिति के बीच तमिलनाडु के संयमित और परिश्रमी बल्लेबाज नारायण जगदीशन की टीम में एंट्री, इस कहावत को सार्थक करती है—”हर संकट एक अवसर होता है।”
पंत का फ्रैक्चर: टीम को लगा झटका
ऋषभ पंत, जो इस दौरे में भारत की बल्लेबाजी की रीढ़ रहे हैं, चौथे टेस्ट के पहले दिन एक रिवर्स स्वीप खेलते वक्त क्रिस वोक्स की गेंद पर चोटिल हो गए। प्रारंभिक दर्द के बावजूद उन्होंने एक संघर्षपूर्ण अर्धशतक (75 गेंदों में 54 रन) बनाया, लेकिन अब यह लगभग तय है कि वह शृंखला से बाहर हो सकते हैं। टीम इंडिया के लिए यह एक बड़ा झटका है, खासकर तब जब पंत बल्लेबाजी के साथ-साथ विकेट के पीछे भी बेहद अहम भूमिका निभाते रहे हैं।
जगदीशन की चुपचाप दस्तक
नारायण जगदीशन का नाम पहले तो ईशान किशन जैसे हाई-प्रोफाइल विकल्पों की भीड़ में कहीं छिपा हुआ था। लेकिन चयनकर्ताओं ने न केवल फॉर्म बल्कि नैतिक अनुशासन और कंसिस्टेंसी को भी प्राथमिकता दी।
जगदीशन ने घरेलू क्रिकेट में न सिर्फ दोहरे और तिहरे शतक जमाए, बल्कि वह विश्व रिकॉर्ड तक अपने नाम कर चुके हैं। और शायद सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि उन्होंने क्रिकेट के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन को भी पीछे रखा—अपनी बहन की शादी तक में शामिल नहीं हो सके और स्काइप पर रस्में निभाईं।
भारतीय टीम: फिटनेस नहीं, अब बड़ी चिंता
इंग्लैंड के मौजूदा दौरे में चोटें एक के बाद एक दस्तक दे रही हैं:
अर्शदीप सिंह (अंगूठे की चोट)
आकाश दीप (कमर दर्द)
नितीश रेड्डी (घुटने की चोट)
अब जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज को भी लंगड़ाते हुए देखा गया।
इससे यह सवाल उठता है कि क्या हमारी वर्कलोड मैनेजमेंट नीति और खिलाड़ियों की तैयारी प्रक्रिया वास्तव में व्यावहारिक है? एकदिवसीय, टी20 और टेस्ट क्रिकेट के बीच खिलाड़ियों का लगातार आना-जाना, फिजियोथेरेपी के बावजूद ऐसी हालत में आ जाना, निश्चित ही गंभीर सोच की मांग करता है।
चयन नीति में बदलाव के संकेत?
जगदीशन का चयन सिर्फ एक खिलाड़ी को टीम में जोड़ना नहीं है—यह संकेत है कि बीसीसीआई और चयनकर्ता अब ‘ब्रांड’ से आगे बढ़कर ‘बेस’ पर ध्यान दे रहे हैं।
जहाँ ईशान किशन आईपीएल और सोशल मीडिया लोकप्रियता के कारण पहले चयन के दावेदार माने जा रहे थे, वहीं चयनकर्ताओं ने संयम और प्रतिबद्धता को तरजीह दी। उनके कोच एजी गुरुस्वामी का यह कथन कि “वह परिणाम नहीं, प्रक्रिया पर ध्यान देते हैं”—भारतीय टीम की नई सोच का संकेत देता है।