
जबलपुर। खोजी पत्रकारिता और प्रेस स्वतंत्रता के लिहाज से मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का यह आदेश एक ऐतिहासिक मिसाल माना जा रहा है। सागर जिले में पुलिस थानों की कथित अवैध गतिविधियों को उजागर करने वाले स्टिंग ऑपरेशन के मामले में हाईकोर्ट ने तीन पत्रकारों को बड़ी राहत देते हुए उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। जस्टिस हिमांशु जोशी की एकलपीठ ने साफ शब्दों में कहा कि स्टिंग के आधार पर पत्रकारों को प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।
यह पहला अवसर माना जा रहा है जब किसी स्टिंग ऑपरेशन के बाद पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर अदालत ने इतना सख्त और प्रत्यक्ष हस्तक्षेप किया हो। कोर्ट ने न केवल पुलिस कार्रवाई पर रोक लगाई, बल्कि मामले की गंभीरता को देखते हुए शासन और पुलिस के शीर्ष अधिकारियों से जवाब भी तलब किया है।
शीर्ष अधिकारियों को नोटिस
हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), प्रमुख सचिव गृह विभाग और प्रमुख सचिव विधि विभाग को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। इसके साथ ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को भी नोटिस जारी कर इस पूरे प्रकरण पर अपना पक्ष रखने के निर्देश दिए गए हैं। इससे स्पष्ट है कि अदालत इस मामले को सिर्फ स्थानीय विवाद नहीं, बल्कि व्यापक प्रशासनिक और संस्थागत सवाल के रूप में देख रही है।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को बनाया गया पक्षकार
याचिका में सागर रेंज की आईजी हिमानी खन्ना, सागर एसपी विकास सहवाल सहित गोपालगंज, मोतीनगर, बहेरिया और मकरोनिया थानों के थाना प्रभारियों को व्यक्तिगत रूप से पक्षकार बनाया गया है। पत्रकारों की ओर से अदालत को बताया गया कि स्टिंग सामने आने के बाद उन्हें झूठे मामलों में फंसाकर गिरफ्तार किए जाने की आशंका है।
स्टिंग रिपोर्ट पर कोर्ट की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस हिमांशु जोशी की बेंच ने 30 नवंबर 2025 को दैनिक भास्कर में प्रकाशित स्टिंग रिपोर्ट को पढ़ा और उसमें सामने आए तथ्यों को गंभीर माना। रिपोर्ट में पुलिस की संदिग्ध और कथित गैरकानूनी भूमिका उजागर होने का दावा किया गया था। अदालत ने माना कि यदि पत्रकारों की आशंका सही है तो यह न सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता पर भी सीधा हमला माना जाएगा।
पत्रकार सुरक्षा की दिशा में अहम कदम
कोर्ट का यह आदेश प्रदेश में काम कर रहे पत्रकारों, विशेषकर खोजी और स्टिंग पत्रकारिता से जुड़े रिपोर्टरों के लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भविष्य में पुलिस या प्रशासन द्वारा पत्रकारों पर दबाव बनाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाएगा।
अगली सुनवाई जनवरी में
मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी 2026 को निर्धारित की गई है। तब तक संबंधित अधिकारियों और एजेंसियों को अपना जवाब दाखिल करना होगा।
कुल मिलाकर यह मामला सिर्फ सागर जिले की पुलिस व्यवस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे प्रदेश में खोजी पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सुरक्षा से जुड़ा एक महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप माना जा रहा है।