शाम होते ही ओपन बार (Open bar) में बदलता हाई स्कूल ग्राउंड – छात्रावास असुरक्षित

माखननगर का इकलौता हाई स्कूल ग्राउंड, जहां बच्चों को खेलना-कूदना चाहिए था, अब हर शाम open bar में बदल रहा है। शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक मैदान में open drinking का नजारा आम है। बोतलें और प्याले यहां खेल के सामान की जगह लेते दिखते हैं। सबसे गंभीर बात यह है कि मैदान के पास ही boys and girls hostels हैं, जिससे छात्रों की सुरक्षा पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। लोगों का कहना है कि यह school ground turned into bar अब शराबियों का अड्डा बन चुका है, लेकिन administration negligence साफ नजर आती है।

Open Bar

माखननगर को लोग माखन दादा की नगरी कहते हैं। लेकिन हकीकत में यह नगरी अब “मलाईदार खेलों” की नहीं, बल्कि खुले आसमान के बार (open bar) की नगरी बन गई है। नगर का इकलौता हाई स्कूल ग्राउंड, जहां कभी बच्चों की किलकारियां और खेल-कूद की आवाजें गूंजनी चाहिए थीं, वहां अब बोतलों की खनक और ठहाकों का साम्राज्य है।

शाम सात बजे के बाद मैदान का नजारा बिल्कुल बदला-बदला होता है। यहां क्रिकेट की गेंद नहीं, बल्कि शराब की बोतलें घूमती हैं। खिलाड़ियों के हाथ में बल्ला नहीं, प्याला होता है। और अगर बच्चन जी इस मैदान से गुजरते, तो शायद अपनी ही कविता पर मुस्कुरा उठते—
“किसी ओर में आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला।
किसी ओर में आँखें फेरूँ, दिखलाई देता प्याला।”

सबसे दिलचस्प बात यह है कि मैदान के आसपास ही बॉयज़ और गर्ल्स छात्रावास हैं। यानी यह “नशे का महाकुंभ” सीधे शिक्षा की दहलीज़ पर सजाया जा रहा है। छात्र अगर खेलों से प्रेरित न भी हों, तो जीवन कौशल की यह ओपन क्लास रोज़ाना देख ही लेते हैं। एक छात्र ने मज़ाक में कहा—“यहां हम सीखते हैं कि टीमवर्क क्या होता है—एक बोतल खत्म हो जाए तो अगली तुरंत पास की जाती है।”

प्रशासन? वह तो शायद इसे सांस्कृतिक कार्यक्रम समझकर चुप बैठा है। आखिरकार, नगर के विकास की परिभाषा अब यही तो है—खेल मैदान में खेल नहीं, नशे की प्रतियोगिता हो।

माखननगर के लोग पूछ रहे हैं—क्या यही है वह सपनों का नगर, जहां मैदान युवाओं का भविष्य बनाने के बजाय, उन्हें बोतलों में डुबो रहा है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This will close in 0 seconds

error: Content is protected !!