नर्मदापुरम की सनसनीखेज घटना: पोते की चाहत में Grandmother ने की मासूम पोती की हत्या

नर्मदापुरम: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के नर्मदापुरम जिले से एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने पूरे प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर को झकझोर कर रख दिया। जिले की सिवनी मालवा तहसील के ग्राम बेरखेड़ी में एक चार माह की मासूम बच्ची की हत्या उसकी सगी दादी (Grandmother) ने कर दी। कारण था—उसे पोते की चाहत थी और पोती के जन्म से वह खुश नहीं थी। इस नृशंस वारदात ने एक बार फिर समाज में व्याप्त लिंग भेदभाव, अंधविश्वास और पितृसत्तात्मक सोच पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

(Grandmother)

हत्या की वारदात: झूले से लेकर कुएं तक का सफर

मीडिया रिपोर्ट्स और पुलिस के मुताबिक, 27 मई को जन्मी यह मासूम बच्ची अपने घर के आँगन में झूले पर खेल रही थी। उसकी मां घर के अंदर बर्तन धोने में व्यस्त थी। इसी बीच दादी (Grandmother) मीनाबाई ने मौका पाकर बच्ची के मुंह में गमछे का टुकड़ा ठूंस दिया। कपड़े का टुकड़ा लगभग 24 सेंटीमीटर लंबा और 10 सेंटीमीटर चौड़ा था, जिससे बच्ची का दम घुट गया और उसकी मौत हो गई। हत्या के बाद आरोपी दादी (Grandmother) ने शव को पोटली में बांधा और उसे पास के सूखे कुएं में फेंक दिया। फिर वह घर लौटकर ऐसे सामान्य व्यवहार करने लगी मानो कुछ हुआ ही न हो। उसने खुद को संदेह से बचाने के लिए बाड़े की सफाई करना शुरू कर दिया।


परिवार और गांव में मचा हड़कंप

बच्ची अचानक घर से गायब हो गई तो परिवार के लोग परेशान हो गए। पिता शुभम अशवारे उस समय घर पर नहीं थे। जब बच्ची नहीं मिली तो पूरा परिवार और ग्रामीण खोजबीन में जुट गए। खोज के दौरान दादा और गांव के कुछ लोगों ने कुएं में एक पोटली देखी। पहले इसे नजरअंदाज कर दिया गया, लेकिन जब शक गहराया तो उसे बाहर निकालने की बात हुई। तब दादी (Grandmother) मीनाबाई ने लोगों को यह कहकर रोक दिया कि पोटली में महावारी के गंदे कपड़े रखे हैं। ग्रामीणों ने बात मान ली और पोटली खोलने से बचते रहे। लेकिन जब पुलिस को सूचना दी गई और पोटली खोली गई, तो सबके पैरों तले जमीन खिसक गई। अंदर मासूम बच्ची का शव था।


पुलिस की जांच और कबूलनामा

थाना प्रभारी राजेश दुबे के अनुसार, फोरेंसिक टीम की मदद से बच्ची का पोस्टमार्टम कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची के मुंह में कपड़ा ठूंसने से उसका दम घुटा और यही उसकी मौत का कारण बना। शक के आधार पर जब पुलिस ने दादी (Grandmother) मीनाबाई से पूछताछ की, तो पहले वह बचती रही लेकिन कड़ी पूछताछ के बाद उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है और बीएनएस की धारा 103(1) के तहत केस दर्ज किया है।


पिता की पीड़ा: न्याय की मांग

बच्ची के पिता शुभम अशवारे ने मीडिया से बातचीत में कहा— “मैं काम पर गया हुआ था, तभी घर से सूचना मिली कि बच्ची गायब है। हमने बहुत खोजा लेकिन वह नहीं मिली। बाद में कुएं में पोटली मिली। मेरी माँ ने कबूल किया है कि उन्होंने बच्ची को मारा है। लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने डर में कबूल किया है या सच में यह किया है। मैं बस यही चाहता हूँ कि मुझे न्याय मिले।” यह बयान बताता है कि यह घटना केवल एक हत्या नहीं, बल्कि परिवार के लिए गहरे मानसिक और भावनात्मक आघात का कारण भी है।


सामाजिक दृष्टिकोण: पोते की चाहत का बोझ

यह मामला सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि समाज की उस कड़वी सच्चाई को भी उजागर करता है जहां आज भी बेटियों को बोझ माना जाता है और बेटों की चाह में लोग अपराध तक कर बैठते हैं। भारत में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाएं चल रही हैं, लेकिन ग्रामीण और परंपरागत समाज में अभी भी मानसिकता नहीं बदली है। दादी (Grandmother) जैसे लोगों की सोच इस बात को साबित करती है कि शिक्षा और जागरूकता के बिना केवल सरकारी योजनाएं पर्याप्त नहीं हैं।

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कानूनी पहलू

भारतीय न्याय प्रणाली के नए कानूनों के तहत यह मामला मानव वध (Culpable Homicide) की श्रेणी में दर्ज किया गया है। बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) की धारा 103(1) के तहत हत्या का दोषी पाए जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान है। इसके अलावा, यह मामला बाल अधिकारों और महिला संरक्षण कानूनों से भी जुड़ा हुआ है। पुलिस और अदालत इस मामले को उदाहरण बनाने की दिशा में कदम उठा सकती हैं ताकि भविष्य में कोई और ऐसा कृत्य न कर सके।


गांव और समाज पर असर

ग्राम बेरखेड़ी में इस घटना के बाद गहरा आक्रोश है। लोग हैरान हैं कि एक सगी दादी (Grandmother) ने अपनी ही पोती की जान ले ली। ग्रामीणों का कहना है कि इस घटना ने पूरे गांव की आत्मा को झकझोर दिया है। यह घटना समाज को एक बड़ा सबक देती है—कि हमें अभी भी लिंग भेदभाव के खिलाफ लंबे संघर्ष की जरूरत है।


बदलती मानसिकता की दरकार

चार माह की मासूम बच्ची का कत्ल केवल एक पारिवारिक अपराध नहीं, बल्कि सामाजिक बीमारी का परिणाम है। पोते की चाहत और पोती के प्रति भेदभाव ने एक निर्दोष जीवन छीन लिया। समाज को अब यह समझना होगा कि बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं। जिस घर से बेटियों को तुच्छ समझा जाता है, वही घर आगे चलकर अंधकार में डूब जाता है। जरूरी है कि इस मामले को एक मिसाल बनाया जाए और दोषी को कड़ी से कड़ी सजा मिले। साथ ही ग्रामीण इलाकों में जागरूकता अभियान, महिला शिक्षा और मानसिकता में बदलाव की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं।

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