Ganesh Chaturthi 2023 : गणपति उत्सव में भोग में अवश्य चढ़ाएं मोदक, श्रीगणेश हो जाएंगे तृप्त, जानिए मोदक के अस्तित्व में आने की कथा

गणपति उत्सव में भोग में अवश्य चढ़ाएं मोदक, श्रीगणेश हो जाएंगे तृप्त, जानिए मोदक के अस्तित्व में आने की कथा

 देश का एक मुख्य उत्सव और महाराष्ट्र का सबसे लोकप्रिय त्यौहार ‘गणेश चतुर्थी’ (Ganesh Chaturthi 2023) आने वाला है। इस बार 10 दिवसीय का महापर्व ‘गणेश चतुर्थी’ का पावन 19 सितंबर, मंगलवार के दिन  है। ‘गणेश चतुर्थी’ एक ऐसा त्यौहार है जिसकी तैयारी महाराष्ट्र में महीने भर पहले से शुरू हो जाती है। जगह-जगह भगवान गणेश के बड़े पंडाल लगते हैं। भगवान के भोज की तैयारियां हो जाती हैं और लड्डू के साथ बनते हैं, उनके प्रिय मोदक। मोदक एक महाराष्ट्रीयन मिठाई है जिसे खासतौर पर इसी उत्सव के लिए बनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीगणेश को लड्डू और मोदक का भोग लगाने से वे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि, मोदक कैसे बनाए गए होंगे? आखिर भगवान गणेश को यह मिठाई क्यों पसंद है? ऐसा माना जाता है कि, बिना मोदक के उनकी पूजा पूरी नहीं हो सकती। आइए जानें आखिर मोदक और भगवान गणेश का क्या संबंध है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, यह मिठाई भगवान गणेश को अति प्रिय है। पुराणों के अनुसार, देवी अनुसूया ने भगवान शिव को परिवार सहित अपने यहां खाने पर बुलाया था। इस निमंत्रण में भगवान शिव परिवार के साथ पहुंचे। देवी अनुसूया ने सभी से आग्रह किया कि जब गणपति बप्पा अपना खाना समाप्त करें, तभी सब भोज पर बैठें। लेकिन छोटे से गणपति बार-बार खाना मंगवाते रहे।

यह देख मां पार्वती ने खाने के बाद उन्हें एक मोदक दिया, जिसे खाते ही गणपति बप्पा ने लंबी-सी डकार ली। इतना ही नहीं, भगवान शिव ने भी इसके बाद 21 बार डकार ली। मां पार्वती ने देवी अनुसूया से आग्रह किया कि अब वह अपने बाकी मेहमानों को भोज के लिए बैठा सकती हैं, क्योंकि गणेश जी तृप्त हो चुके हैं। देवी अनुसूया यह देख हैरान हुई और उन्होंने इसकी रेसिपी मां पार्वती से मांगी। इसके बाद, पार्वती जी ने अनुरोध किया कि उनके पुत्र के सभी भक्त उन्हें इक्कीस मोदक अर्पित करें, करेंगे तो भगवान खुश होंगे और उनकी मनोकामना पूरी होगी।

जानकारी के अनुसार, भारत में कई तरह से मोदक बनाए जाते हैं और इसे विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। इसके सबसे ज्यादा लोकप्रिय वर्जन को उकडीचे मोदक कहा जाता है, जिसे घी के साथ गर्मागर्म खाया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि मोदक की उत्पत्ति महाराष्ट्र में हुई, लेकिन इसे कैसे बनाया गया और किसने बनाया इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है। भारत में इसके कई नाम हैं, जैसे तमिल में इसे मोथागम या कोझुकट्टई कहा जाता है। तेलुगु में इसे कुदुम कहते हैं और कन्नड़ में मोधका या कडुबु नाम से जाना जाता है।

इसे विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के दौरान बनाया जाता है। यह गुड़, ताजा कसा हुआ नारियल, सूखे फल और मीठे हल्के मसालों से भरा हुआ एक एक स्वीट डंपलिंग है। इसका बाहरी शेल सॉफ्ट होता है, जो चावल के आटे या गेहूं के आटे में मैदा मिलाकर बनाया जाता है। अंदर तमाम फिलिंग भरी जाती हैं।

मोदक ज्ञान का प्रतीक है। जैसे मोदक को थोड़ा-थोड़ा और धीरे-धीरे खाने पर उसका स्वाद और मिठास अधिक आनंद देती है और अंत में मोदक खत्म होने पर आप तृप्त हो जाते हैं, उसी तरह वैसे ही ऊपरी और बाहरी ज्ञान व्यक्ति को आनंद नही देता परंतु ज्ञान की गहराई में सुख और सफलता की मिठास छुपी होती है।

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