
छिंदवाड़ा जिले की जुन्नारदेव तहसील से लगी विशाला पंचायत में करोड़ों के विकास कार्यों के बीच एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पंचायत व्यवस्था और जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां विधायक निधि से प्रस्तावित सामुदायिक भवन का निर्माण तो होना था, लेकिन जमीन पर खड़ा है सिर्फ एक स्ट्रक्चर जिस पर भगवान शिव की 51 फीट प्रतिमा स्थापित की जा रही है। आरोप है कि भवन निर्माण के नाम पर फर्जी बिल लगाकर सरकारी राशि निकाल ली गई, जो अब पूरे जिले में चर्चा का केंद्र बन गया है।
विधायक निधि से 24.98 लाख मंजूर — लेकिन भवन नदारद
प्राप्त जानकारी के अनुसार 29 मार्च 2023 को सामुदायिक भवन के लिए विधायक निधि से 24 लाख 98 हजार रुपये की स्वीकृति दी गई थी। प्रशासनिक प्रक्रिया के बाद तीन किस्तों में 16 लाख रुपये पंचायत तक पहुंच भी चुके थे। नियमों के अनुसार यह राशि सामुदायिक भवन के निर्माण में उपयोग होनी थी, लेकिन मौके पर पहुंची जांच टीम को वहां ऐसा कोई भवन नजर नहीं आया।
इसके उलट, वहां 15 पिलर्स वाला एक बड़ा स्ट्रक्चर बना हुआ है, जिस पर भगवान शिव की 51 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की जानी है। यह स्थान स्थानीय स्तर पर एक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसका सीधा अर्थ यह है कि सामुदायिक भवन तो कभी बना ही नहीं, लेकिन उसके नाम पर सरकारी राशि की निकासी कर ली गई।
स्थानीय लोगों का आरोप – “धार्मिक स्थल के नाम पर विधायक निधि का दुरुपयोग”
स्थानीय निवासी अश्वनी गोदवानी और विवेक चंद्रवंशी ने खुलकर आरोप लगाया कि
“यहां सामुदायिक भवन बनना था, लेकिन जो स्ट्रक्चर बनाया गया है वह धार्मिक स्थल के लिए है। प्रतिमा के लिए चंदा भी हुआ है, जबकि सरकारी निधि सामुदायिक भवन के नाम पर निकाल ली गई है। ये साफ-साफ भ्रष्टाचार है।”
लोगों का कहना है कि अगर यह जगह धार्मिक विकास के लिए ही चुनी गई थी तो इसकी स्पष्ट अनुमति और अलग प्रस्ताव क्यों नहीं बनाया गया? सामुदायिक भवन जैसी सार्वजनिक सुविधा को छोड़कर धार्मिक संरचना को प्राथमिकता देना अपने आप में संदिग्ध है।
कलेक्टर की बड़ी कार्रवाई — दोषियों पर रिकवरी नोटिस
शिकायत के बाद कलेक्टर हरेंद्र नारायण ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे तत्काल एसडीएम जुन्नारदेव को जांच के लिए सौंप दिया। जांच रिपोर्ट आने पर कलेक्टर ने किसी भी तरह की ढील नहीं दी और कड़ा कदम उठाते हुए—ग्राम पंचायत विशाला के सरपंच,ग्राम पंचायत सचिव,संबंधित इंजीनियर,सब इंजीनियर,तत्कालीन AE (असिस्टेंट इंजीनियर),CEO जनपद पंचायत इन सभी को रिकवरी नोटिस जारी कर दिया है।
कलेक्टर ने स्पष्ट कहा कि सरकारी राशि का दुरुपयोग किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जाएगा और हर्जाना संबंधित अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से वसूला जाएगा।
“यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, जनता के भरोसे की चोरी है”
राज्य में पंचायतों पर लगातार बढ़ते आरोपों के बीच यह मामला एक और बड़ा झटका है। यह सिर्फ सरकारी धन की चोरी नहीं, बल्कि जनता के विश्वास का उल्लंघन है। विधायक निधि जैसी राशि का उद्देश्य ग्रामीण विकास और सार्वजनिक सुविधाओं को बढ़ावा देना होता है, न कि धार्मिक संरचनाओं के नाम पर फर्जी बिल बनाने के लिए।
यह सवाल भी अब तेज़ी से उठ रहा है कि:क्या पंचायत और जनपद स्तर पर जिम्मेदार अधिकारी आंख मूंदकर बिल पास कर रहे थे?
किसके दबाव में सामुदायिक भवन की जगह धार्मिक संरचना को प्राथमिकता मिली?
यदि यह धार्मिक स्थल था तो फिर प्रतिमा के लिए चंदा किस उद्देश्य से लिया गया और सरकारी राशि किस उद्देश्य से?
यह मामला भ्रष्टाचार के साथ-साथ प्रशासनिक लापरवाही का भी क्लासिक उदाहरण बन गया है।
कलेक्टर ने जिस तेजी से कार्रवाई की है, उससे साफ है कि अब इस मामले में आगे और बड़े कदम उठेंगे। रिकवरी के बाद निलंबन और FIR की प्रक्रिया भी संभव है। अगर फर्जी बिल निर्माण सिद्ध होता है, तो यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आएगा।
स्थानीय लोगों की मांग है कि इस पूरे मामले को सिर्फ रिकवरी तक सीमित न रखा जाए, बल्कि इसमें शामिल सभी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों पर सख्त विभागीय और कानूनी कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी सरकारी निधि के साथ इस तरह का खिलवाड़ करने की हिम्मत न करे।