अवैध मिट्टी उत्खनन से पर्यावरण और खेती पर गहराता संकट

15–20 फीट तक खुदाई से खेतों की उर्वरा शक्ति खत्म, एनजीटी के आदेशों की अनदेखी

माखननगर के मोहासा औद्योगिक में पर्यावरण को लेकर अवैध मिट्टी उत्खनन एक गंभीर और चिंताजनक समस्या बनता जा रहा है। खेतों और खुले क्षेत्रों से भारी मात्रा में मिट्टी निकालकर उसका व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है, जिससे न केवल पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है, बल्कि कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति भी स्थायी रूप से नष्ट हो रही है। हालात यह हैं कि कई स्थानों पर खेतों को 15 से 20 फीट तक खोद दिया गया है, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर ठोस कार्रवाई अब तक नजर नहीं आ रही।

खेतों की ऊपरी परत खत्म, खेती पर सीधा असर

पर्यावरणविद सुभाष सी.पाण्डे इस स्थिति को बेहद खतरनाक बताते हैं। उनका कहना है कि जिन खेतों से 15 से 20 फीट तक मिट्टी निकाली जा चुकी है, वहां की उर्वरा शक्ति लगभग समाप्त हो चुकी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि खेती योग्य भूमि की ऊपरी परत में ही सूक्ष्म जैविक तत्व और माइक्रो बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो मिट्टी को जीवंत बनाते हैं और फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्व तैयार करते हैं।

जब यह ऊपरी परत हटा दी जाती है, तो जमीन अपनी प्राकृतिक उत्पादन क्षमता खो देती है। ऐसे खेतों में वर्षों तक खेती करना संभव नहीं रह जाता, चाहे उसमें कितना भी उर्वरक क्यों न डाल दिया जाए।

भविष्य की खेती और खाद्य सुरक्षा पर खतरा

विशेषज्ञों का मानना है कि अवैध मिट्टी उत्खनन का असर केवल वर्तमान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा प्रभाव भविष्य की खेती और खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा। जिन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर मिट्टी निकाली जा रही है, वहां धीरे-धीरे बंजर भूमि का क्षेत्र बढ़ता जा रहा है।

खेती पर निर्भर किसानों के सामने रोज़गार का संकट खड़ा हो रहा है। एक बार जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म हो जाने के बाद उसे पुनः उपजाऊ बनाने में दशकों लग सकते हैं, वह भी पूर्ण रूप से संभव नहीं होता।

भूजल और जल निकासी भी प्रभावित

अवैध उत्खनन से केवल मिट्टी ही नहीं, बल्कि भूजल संरचना भी प्रभावित हो रही है। गहराई तक खुदाई के कारण प्राकृतिक जल निकासी मार्ग बाधित हो रहे हैं। बरसात के मौसम में जहां पानी रुकने लगता है, वहीं गर्मियों में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। इसके बावजूद न तो कोई वैज्ञानिक अध्ययन कराया गया और न ही पर्यावरणीय स्वीकृति ली गई।

एनजीटी के आदेशों की खुली अवहेलना

इस पूरे मामले में सबसे गंभीर पहलू यह है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि खेती योग्य भूमि की मिट्टी का व्यावसायिक उपयोग नहीं किया जा सकता। एनजीटी ने अपने एक फैसले में कहा है कि खेतों की मिट्टी का उपयोग निर्माण या अन्य व्यावसायिक गतिविधियों में करना पर्यावरण के लिए घातक है।

इसके बावजूद जिले में खुलेआम खेतों से मिट्टी निकाली जा रही है और उसे विभिन्न निर्माण कार्यों में खपाया जा रहा है। यह न सिर्फ़ एनजीटी के आदेशों की अवहेलना है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत दंडनीय अपराध भी है।

संगठित नेटवर्क के संकेत

स्थानीय लोगों का कहना है कि इतनी बड़ी मात्रा में मिट्टी की खुदाई और परिवहन किसी एक व्यक्ति के बस की बात नहीं हो सकती। इसके लिए पोकलेन, डंपर, ट्रैक्टर-ट्रॉलियां, ईंधन, श्रमिक और खरीदार— सभी एक संगठित तंत्र की ओर इशारा करते हैं।

यह सवाल भी उठ रहा है कि बिना किसी संरक्षण के यह अवैध गतिविधि इतने लंबे समय तक कैसे चल सकती है। ग्रामीणों का आरोप है कि शिकायतों के बावजूद मौके पर कार्रवाई नहीं होती, जिससे अवैध उत्खनन करने वालों के हौसले और बढ़ गए हैं।

कार्रवाई के नाम पर औपचारिकता

जब छोटे निर्माण कार्यों पर तुरंत नोटिस जारी कर दिए जाते हैं, तब इतने बड़े पैमाने पर हो रहे अवैध मिट्टी उत्खनन पर कार्रवाई न होना कई सवाल खड़े करता है। न तो मशीनें जब्त होती हैं, न ही रॉयल्टी और जुर्माने की वसूली दिखाई देती है।

पर्यावरणविदों का कहना है कि यदि समय रहते सख़्त कदम नहीं उठाए गए, तो जिले की बड़ी कृषि भूमि स्थायी रूप से नष्ट हो सकती है।

कानून क्या कहता है

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत बिना पर्यावरणीय स्वीकृति भूमि की प्रकृति बदलना अपराध है। वहीं खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम के अनुसार बिना अनुमति खनन या उत्खनन अवैध माना जाता है। इन कानूनों में मशीनों की जब्ती, जुर्माना और कारावास तक का प्रावधान है।

इसके बावजूद ज़मीनी स्तर पर कानून का प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा, जिससे प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।

पर्यावरणविदों की चेतावनी

पर्यावरणविद सुभाष सी. पाण्डे का कहना है कि यदि अभी भी अवैध मिट्टी उत्खनन पर रोक नहीं लगाई गई, तो इसके परिणाम आने वाले वर्षों में और भी भयावह होंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि यह केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं है, बल्कि किसानों की आजीविका, खाद्य सुरक्षा और भावी पीढ़ियों के भविष्य से जुड़ा सवाल है।

अवैध मिट्टी उत्खनन का मामला केवल कानून उल्लंघन का नहीं, बल्कि पर्यावरण और कृषि दोनों के अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है। आवश्यकता है कि प्रशासन एनजीटी के आदेशों और पर्यावरण कानूनों का सख्ती से पालन कराए, दोषियों पर कठोर कार्रवाई करे और खेतों की मिट्टी की रक्षा सुनिश्चित करे।

यदि अब भी इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो आने वाले समय में इसका खामियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ेगा।

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