जंगल मार्ग पर बाघ
दमोह के वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में 20 दिन पहले एक बाघ किसी दूसरे जंगल से होता हुआ नौरादेही पहुंच गया था। वह इस जंगल में घूमने के बाद वापस लौट गया है। उसे ग्रामीणों नें देखा था। बाद में उसकी खोजबीन की गई तो डोगरगांव में वनकर्मियों ने उसके होने की पुष्टि की। उसके बाद से ही उस पर नजर रखी जा रही थी। नौरादेही का जंगल घूमने के बाद वह बाघ वापस लौट गया। अब कहीं भी उसके होने की पुष्टि नहीं हो रही है। इस नए बाघ ने डोंगरगांव रेंज़ की हाड़ीकाट बीट में एक बैल का शिकार किया था। इसकी सूचना वन अमले को ग्रामीणों ने दी थी। दूसरे दिन वनकर्मियों ने बाघ के होने की पुष्टि उसके पगमार्क के आधार पर की थी।
एक ने बनाया आशियाना दूसरा घूम-फिरकर लौट गया
नौरादेही अभयारण्य और दमोह के दुर्गावती टाइगर रिजर्व को मिलाकर प्रदेश का सातवां रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व बनाया गया है। यहां वर्तमान में 19 बाघ हैं। यहां एक और बाघ कुछ दिन पहले आया था जिसे मिलाकर बाघों की संख्या 20 हो गई थी। वह जंगल घूमने के बाद किसी और जंगल की ओर चला गया। इसी तरह एक और बाघ दो साल पहले नौरादेही अभयारण्य में आ गया था, जिसने यहां के जंगल को ही अपना आशियाना बना लिया। इस टाइगर रिजर्व में 18 बाघ एक ही परिवार के सदस्य हैं जबकि किसी दूसरे जंगल से आया 19वां बाघ इस परिवार का हिस्सा नहीं है। वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर अब्दुल अंसारी ने बताया कि डोंगरगांव रेंज में नया बाघ देखा गया था। उसकी खोजबीन के लिए हाथियों का दल भी वहां पहुंचा था, लेकिन अब उस बाघ का कोई सुराग नहीं मिला। डोंगरगांव के जंगलों से होकर वह बाघ दूसरे पार्क या दूसरे क्षेत्र में चला गया है। टाइगर रिजर्व में अभी तक दो बाघ दूसरे जंगल से आए हैं। एक ने इसे ही अपना ठिकाना बना लिया जबकि दूसरा लौट गया है।
1975 में हुई थी नौरादेही की स्थापना
प्रदेश के सबसे बड़े अभयारण्य में शामिल नौरादेही अभयारण्य की स्थापना 1975 में हुई थी। वर्ष 2018 में यह सुर्खियों में आया जब यहां बाघिन राधा और किशन नामक बाघ को लाया गया। उसके बाद यहां महज पांच साल के अंदर ही बाघों की संख्या 19 पहुंच गई जबकि बाघ किशन की मौत हो चुकी है। इसी बाघ ने इस अभयारण्य को आबाद किया था।
अभयारण्य तक सीमित हैं बाघ, बाघिन
टाइगर रिजर्व बनने के बाद नौरादेही अभयारण्य में दमोह जिले का अधिकांश जंगली भाग शामिल हो गया। पहले नोरादेही अभयारण्य में छह रेंज थी, लेकिन वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व बनने के बाद इसका क्षेत्रफल बढ़ गया है। इसमें तेंदूखेड़ा और जबेरा क्षेत्र का जंगली क्षेत्र शामिल किया गया है। अब तीन रेंज तेंदूखेड़ा और जबेरा में संचालित होनी है। जिसकी जगह तो तय हो गई है, लेकिन अभी तक संचालन नहीं हो रहा है। जिन तीन जगहों पर नई रेंजों का संचालन होना है उनमें झलोन, जबेरा और सिगोंरगढ़ शामिल हैं। बाघ, बाघिन की बात करें तो इन्होंने अपना अलग- अलग एरिया और क्षेत्र जरूर बनाया है मगर वह सब नौरादेही के अंतर्गत आने वाले वन परिक्षेत्र तक ही सीमित हैं।
भेडियों की जगह बाघों का कब्जा
वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व के नौरादेही अभयारण्य पर कभी भेडियों का राज हुआ करता था। वर्ष 2018 के बाद यह जंगल बाघों की वजह से पहचाना जाने लगा है। बाघों की बढ़ती संख्या को देखने के बाद इसे टाइगर रिजर्व बनाया गया है। यहां मांसाहारी जानवरों के साथ ही शाकाहारी जानवरों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है।