Damoh News: दमोह में तीन नदियों के संगम पर है मडकोलेश्वर शिव मंदिर, देवताओं ने एक ही रात में बनाया था

Damoh is at the confluence of three rivers Madkoleshwar Shiva temple, the gods built it in one night

मंदिर में स्थापित शिवलिंग

दमोह जिले के बटियागड़ ब्लॉक के सीतानगर गांव के पास भगवान शिव का प्रसिद्ध मड़कोलेश्वर धाम मंदिर है। मान्यता प्रचलित है कि तीन नदियों के संगम स्थल पर स्थित इस मंदिर का निर्माण देवताओं ने एक रात में किया था, जिसमें कहीं जोड़ नहीं हैं।

दमोह से करीब 20 किलोमीटर दूर छतरपुर मार्ग पर यह मंदिर है। यहां भगवान शिव की विशाल पिंडी स्थापित है और तीन नदियों का संगम है। जहां पूरे प्रदेश से श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि मंदिर का निर्माण स्वयं देवताओं द्वारा एक रात में किया गया था। इसके अलावा इस स्थान पर तीन नदियों का संगम होने के कारण इस स्थान को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। यहां पर सुनार, कोपरा नदी आकर मिलती है कुछ दूरी पर इन दोनों नदियो में जुड़ी नदी भी मिल जाती है जिस कारण से इसे त्रिवेणी संगम कहते है।

अपना आकार बदलता है शिवलिंग

यहां पर दूर-दूर से भक्त दर्शन करने आते हैं तथा भगवान भोलेनाथ के सामने अपनी मनोकामना रखते हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो यह मंदिर बड़ा रहस्यमयी माना जाता है, क्योंकि इस मंदिर को बनाने के लिए सिर्फ पत्थर का उपयोग किया गया है जिसमें कहीं भी जोड़ नहीं है। वहीं मंदिर में विराजमान भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग दिन प्रतिदिन अपना आकार बदलता है ओर बढ़ता ही जा रहा है।

हजारों वर्ष पुराना है इतिहास 

इस स्थान के  बारे में लोग बताते हैं कि करीब 1000 वर्ष पूर्व यहां पर एक गांव हुआ करता था जिसका नाम था मड़कोला। जहां पर जहरीले, कीड़े तथा भयंकर जानवर रहा करते थे। यहां के लोग किसी तरह मौत से लड़ते रहे और जिंदगी गुजारते रहते थे। किंवदंती है कि यहां पर एक चबूतरा बना हुआ था जिस पर भगवान भोलेनाथ दिखाई दिए, जिसके बाद एक रात्रि में स्वयं देवताओं द्वारा मंदिर बनाया जा रहा था। तभी इसी गांव की एक महिला के द्वारा आटा पीसने वाली हाथ चक्की चला दी। जिसकी आवाज सुनकर देवता अंतर्ध्यान हो गए और यहां से चले गए। हालांकि तब तक मंदिर तो पूरा बन चुका था, लेकिन सिर्फ कलश नहीं रखा पाया था। इस घटना के बाद इस गांव में किसी अज्ञात बीमारी का प्रकोप कहर बनकर टूटा और पूरा गांव वीरान हो गया तथा कुछ लोग बचे थे जो इस गांव को छोड़ कर चले गए। कुछ समय बाद यहां पर एक संत आए जिनका नाम था शिवोहम महाराज। उन्होंने यहां पर कठिन तपस्या करके भगवान भोलेनाथ को मनाया। यहां पर मकर संक्रांति और शिवरात्रि पर मेला भी लगता है। हजारों की संख्या में दूर-दूर से भक्त आते रहते हैं। इसके अलावा सावन के महीने में हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शनों के लिए आते हैं।

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