गणेश मंदिर
दमोह जिले के नोहटा अंचल से लगे धनसरा गांव में विराजमान भगवान गणेश की अद्वितीय प्रतिमा है। यह प्रतिमा एक मढ़ा के खंडहर होने के बाद निकली थी, जिसकी स्थापना कराई गई थी। ग्रामीणों के अनुसार जिले में अन्य कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। यह सैकड़ों वर्ष प्राचीन है। 10 दिवसीय गणेशोत्सव पर्व की शुरुआत हो गई है इसलिए यहां श्रद्धालु दर्शनों के लिए आ रहे हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि व्यारमा नदी के किनारे कभी मढ़ा हुआ करता था, जिसके खंडहर होने पर भगवान गणेश की दुर्लभ प्रतिमा निकली थी। यह प्रतिमा पहले खुले आसमान के नीचे बैठी थी, जिसे स्थानीय लोगों ने धनसरा गांव के बीच में एक चबूतरे में विराजमान किया। ग्रामीणों ने बताया कि धनसरा ही नहीं बल्कि आसपास के दूरस्थ गांव के लोगों का आना-जाना बना रहता है। इस प्रतिमा की ख्याति दूर तक फैली है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं इस प्रतिमा की प्राचीनता के संदर्भ में किसी को कोई जानकारी नहीं है। उनके दादा परदादा के जमाने से यह प्रतिमा पहले खुले आसमान तले पत्थरों के सहारे रखी हुई थी। जिसे श्रद्धालुओं द्वारा यहां लाकर विराजमान कर दिया था। गणेश भगवान की प्रतिमा सैकड़ों वर्ष प्राचीन है। उनके पूर्वज शुरू से ही इस प्रतिमा के दर्शन करते चले आ रहे हैं। इस तरह की अद्वितीय प्रतिमा दमोह जिले में कहीं नहीं है। घनश्याम सिंह ने बताया धनसरा गांव में विराजमान दुर्लभ भगवान गणेश की प्रतिमा जैसी प्रतिमा जिले के अन्य स्थानों में कहीं नहीं है। मौसीपुरा मढ़ा से लेकर व्यारमा नदी किनारे गांव में अलौकिक दुर्लभ प्रतिमा है, जो जहां-तहां बिखरी पड़ी है। वहीं शिलालेखों पर अंकित लिपि आज भी लोगों के लिए अपठनीय पहेली बनी हुई है।
लोगों की मांग है कि धनसरा गांव सहित कारीगांव, मौसीपुरा, मढ़ा में बिखरी पड़ी दुर्लभ हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाओं को संरक्षति करते हुए उचित स्थान प्रदान किया जाए।