स्टार्स परियोजना (स्ट्रेंथनिंग टीचिंग-लर्निंग एंड रिजल्ट्स फॉर स्टेट्स प्रोजेक्ट) के तहत मप्र के उन शिक्षकों और प्राचार्यों को सिंगापुर दौरे पर भेजा जाना था, जिनके स्कूल का बोर्ड परीक्षा परिणाम 90 प्रतिशत या उससे अधिक रहा है। लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग ने नियम-कायदों को ताक पर रखते हुए खुद को इस यात्रा का पात्र बना लिया और सिंगापुर पहुंच गए। योजना के तहत चयन के लिए प्रदर्शन, पद और उम्र का क्राइटेरिया तय किया गया था। इसके अनुसार केवल उन प्राचार्यों और शिक्षकों को पात्र माना गया था जिनके स्कूलों का बोर्ड परीक्षा परिणाम 90 प्रतिशत से अधिक हो। इसके अलावा, पद के अनुसार प्रिंसिपल और उनके समकक्ष शिक्षक तथा उम्र में 58 वर्ष से कम उम्र के शिक्षकों को चुना जाना था। लेकिन विभाग के अधिकारियों ने इन नियमों को तोड़ते हुए खुद को यात्रा के लिए योग्य घोषित कर दिया।
उम्र और पद का क्राइटेरिया तोड़ा
इस यात्रा के लिए बनाए गए नियमों को दरकिनार कर शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने उम्र और पद की शर्तों को तोड़ा। मजेदार बात यह है कि जिन अफसरों ने ये नियम तय किए थे, वे खुद इस दौरे में शामिल हो गए। इनमें से कई अधिकारी उम्र के क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठते। इतना ही नहीं, कुछ अधिकारियों ने विदेश यात्रा के लिए अपना पद बदल लिया। उदाहरण के लिए, जो अफसर कंप्यूटर प्रोग्रामर के रूप में कार्यरत थे, उन्हें प्रिंसिपल के पद पर दिखाकर सिंगापुर भेजा गया।
68 सदस्यीय दल में शामिल अपात्र अधिकारी
5 जनवरी को सिंगापुर भेजे गए प्रदेश के 68 सदस्यीय दल में कई ऐसे लोग शामिल हैं, जो निर्धारित मानकों के अनुसार पात्र ही नहीं थे। इसमें छिंदवाड़ा के डीपीसी जगदीश इस्पाचे, बीईओ ओपी जोशी और प्रोग्रामर श्रीमती डेहरिया जैसे अधिकारी शामिल हैं।
4 करोड़ रुपये खर्च
इस यात्रा पर शासन की ओर से चार करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह धनराशि उन शिक्षकों पर खर्च नहीं होनी चाहिए थी, जिनका प्रदर्शन सच में सराहनीय है? शिक्षा जगत में यह मामला अब चर्चा का विषय बन गया है। शिक्षक समुदाय में इस फैसले को लेकर भारी नाराजगी है।वहीं, दूसरा दल 13 जनवरी से जाने वाला है।