नरेंद्र मोदी-शिवराज सिंह चौहान
मध्य प्रदेश में चुनावों की घोषणा से पहले तीन मुद्दे मुख्य तौर पर भाजपा के खिलाफ नजर आ रहे थे। पहला, जगह-जगह लोग एक ही चेहरे से ऊबने की बात कर रहे थे। दूसरा, तमाम विधायकों के खिलाफ नाराजगी। तीसरा, पुराने नेताओं द्वारा अपने खास लोगों को आगे बढ़ाने की वजह से काडर का आक्रोश। भाजपा ने इन सभी पर एक साथ तेजी से काम किया और चुनाव में वापसी को लेकर तगड़ी रणनीति तैयार की। रणनीति पर कारगर अमल ने सरकार की पटकथा लिख दी। कांग्रेस ने जातीय जनगणना, महिला आरक्षण कानून लागू करने में 2029 तक इंतजार को लेकर भाजपा पर सवाल उठाए और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे से जुड़े वीडियो को मुद्दा बनाने की कोशिश की। मगर, कोई दांव नहीं चला।
भोपाल के एक वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी मिश्र बताते हैं कि भाजपा ने चुनाव के दिन के लिए खास रणनीति बनाई। इसमें भाजपा के कई केंद्रीय नेताओं ने राज्य के जिम्मेदार नेताओं को चुनाव के दिन सुबह साढ़े पांच बजे जगाने का काम किया। इन जिम्मेदार नेताओं को 20-20 अन्य लोगों के नाम दिए गए, जिन्हें फोन कर जगाना था। सात बजे वोट डालकर बाहर आने पर एक साथ वोट की सेल्फी भेजनी थी। इसके बाद इन सभी को एक चेन के रूप में अपने लक्षित 20-20 वोटर को बूथ तक पहुंचाना था। यह फॉलोअप पूरे दिन चला।
इसलिए हारी कांग्रेस
शुभ मुहूर्त के इंतजार में प्रत्याशी चयन में देरी। खराब टिकट वितरण से उपजा असंतोष। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच सार्वजनिक हुए मतभेद ने चुनावी माहौल को और खराब किया। अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह से जुड़ी होर्डिंग पर सवाल कर भाजपा को इस भावनात्मक मुद्दे को ज्यादा ताकत से प्रचारित करने व ध्रुवीकरण का मौका दिया।
हर सीट पर दूसरे राज्यों के नेताओं से फीडबैक
चुनाव से पहले भाजपा ने यूपी, गुजरात सहित कई अन्य राज्यों के विधायकों व नेताओं को प्रदेश की सीटवार जिम्मेदारी दी। उनके फीडबैक पर चुनाव से पहले लाभार्थीपरक योजनाओं को तय करने से लेकर प्रत्याशी चयन तक में अमल हुआ।
प्रत्याशी एलान में परंपरा बदली शुभ मुहूर्त व चुनाव की घोषणा तक प्रत्याशियों का एलान करने वाली भाजपा ने काफी पहले ही हारी सीटों पर प्रत्याशियों का एलान कर दिया। इससे इन सीटों पर घोषित प्रत्याशियों को मतदाताओं तक पहुंचने के लिए पर्याप्त समय मिला। बड़ी संख्या में ऐसी सीटें पार्टी जीतने में सफल रही।
केंद्रीय मंत्रियों-सांसदों को चुनाव लड़ाने का प्रयोग
पहली कतार के जो नेता हर चुनाव में अहम भूमिका निभाते थे, उन सभी को चुनाव में उतार दिया। तीन केंद्रीय मंत्रियों-नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद सिंह पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते व राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के साथ सतना, सीधी, होशंगाबाद व जबलपुर सांसद का मैदान में उतारने की रणनीति कामयाब रही। ज्यादातर जीते।
योगी-हिमंत का ध्रुवीकरण के लिए उपयोग
भाजपा ने चुनाव में अन्य रणनीतियों के साथ ध्रुवीकरण पर भी ध्यान रखा। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ व असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्व सरमा के कार्यक्रम प्राथमिकता पर कराए। दोनों ही नेताओं ने युवाओं में जोश भरने के साथ हिंदुत्व के मुद्दे को भी भुनाने का प्रयास किया।
कांग्रेस की गारंटी पर भारी पड़े भाजपा के वादे
भाजपा ने न सिर्फ कांग्रेस के चुनावी वादों की काट में उनसे आकर्षक वादे किए, बल्कि कांग्रेस के चुनावी गारंटी के प्रचार के सामने मोदी की गारंटी का एलान भी किया। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने न सिर्फ 1250 रुपये नकद भुगतान वाली लाडली बहना योजना लागू की, बल्कि अगले पांच वर्ष में इसे 3000 रुपये तक पहुंचाने का एलान किया। कांग्रेस ने 500 रुपये में रसोई गैस देने के वादा किया तो शिवराज ने 450 रुपये में देना शुरू कर दिया। कांग्रेस ने अपने वचनपत्र में 2600 रुपये में गेहूं व 2500 रुपये में धान की खरीद का वादा किया तो भाजपा ने अपने संकल्प-पत्र में गेहूं 2700 रुपये और धान 3100 रुपये में खरीदने का एलान कर दिया। मोदी की गारंटी कांग्रेस की गारंटी पर भारी पड़ी।
मोदी बनाम कांग्रेस बनाया चुनाव
सत्ता विरोधी लहर को बेअसर करने के लिए सीएम चेहरा न घोषित कर ‘एमपी के मन में मोदी-मोदी के मन में एमपी’ कैंपेन चलाया। इससे चुनाव शिवराज बनाम कमलनाथ की जगह मोदी बनाम कांग्रेस पर केंद्रित हो गया। मोदी के कद के सामने कांग्रेस मैदान में ठहर नहीं सकी।
शिवराज के साथ महाराज का पूरा प्रयोग
एमपी का पिछला विधानसभा चुनाव शिवराज बनाम महराज के रूप में लड़ा गया था। लेकिन, कांग्रेस ने सत्ता में आने पर महराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया था। नतीजा यह हुआ कि ज्योतिरादित्य कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ गए और कांग्रेस का सरकार गंवानी पड़ी। इस चुनाव में भाजपा ने शिवराज और ज्योतिरादित्य को एक साथ साधने का रणनीतिक प्रयास किया।