बैटरी रीसाइक्लिंग जरूरी

धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने तथा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन एवं उपभोग बढ़ाना आवश्यक है. इस सिलसिले में दुनियाभर में इलेक्ट्रिक वाहनों (इवी) को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है. भारत में वित्त वर्ष 2023-24 में 8.50 लाख इलेक्ट्रिक दुपहिया वाहनों की बिक्री का अनुमान है. इसके अलावा, बैटरी चालित कारों, ढुलाई के छोटे वाहनों और यात्री बसों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. भारत समेत कई देशों में सरकारें इन वाहनों के निर्माताओं और ग्राहकों को भारी अनुदान भी मुहैया करा रही हैं. कुछ दिन पहले ही भारत सरकार ने नयी इवी नीति को मंजूरी दी है, जिसके तहत विदेशी कंपनियों को अकेले या स्थानीय कंपनियों के साथ मिलकर वाहन एवं संबंधित कल-पुर्जों के निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में उत्पादन और बिक्री बढ़ रही है. ऐसी स्थिति में बैटरियों की मांग बढ़ना स्वाभाविक है. वर्ष 2030 तक हर वर्ष पांच टेरावाट घंटे की क्षमता की बैटरियों के उत्पादन का आकलन है. इसी के साथ बैटरियों की रीसाइक्लिंग करने और उनके विभिन्न तत्वों के पुनरुपयोग के उपायों पर भी विचार किया जा रहा है. अगले दशक में 10 करोड़ से अधिक बैटरियां सेवामुक्त हो जायेंगी. बैटरी रीसाइक्लिंग, विशेष रूप से लिथियम-आयन बैटरियों की, पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी आवश्यक हैं और ऐसा करने से संसाधनों का भी बेहतर इस्तेमाल संभव हो सकेगा. बैटरियों की मांग बढ़ने के साथ निकेल, कोबाल्ट, मैंगनीज, लिथियम और ग्रेफाइट जैसे खनिजों की मांग भी बढ़ रही है.

ऐसे खनिजों की उपलब्धता कम है और इनके साथ तांबा, एल्युमीनियम, जिंक आदि को जोड़ लें, तो अगर रीसाइक्लिंग ठीक ढंग से नहीं हुई, तो भविष्य में इनकी कीमतों में भारी वृद्धि हो सकती है. उस स्थिति में सस्ते और सतत ऊर्जा के वैश्विक प्रयासों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. बीस से अधिक देशों के साथ कई कंपनियों ने अपने उत्पादन लक्ष्य में बड़ी बढ़ोतरी की है. वर्ष 2030 तक दुनिया की सड़कों पर 14.5 करोड़ से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन हो सकते हैं. ऐसी बैटरियों की आवश्यकता वाहनों के अलावा, कंप्यूटर, लैपटॉप, मेडिकल से जुड़ी चीजों, ड्रोन आदि के लिए भी है. ऐसे में रीसाइक्लिंग की जरूरत बहुत बढ़ जाती है. हालांकि इस संबंध में चर्चाएं हो रही हैं, पर जानकारों को आशंका है कि बैटरी रीसाइक्लिंग की हालत भी कहीं इलेक्ट्रॉनिक कचरे और प्लास्टिक के असफल निष्पादन की तरह न हो जाए. इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि सरकारें और कंपनियां ठोस रणनीति निर्धारित करें.

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